Shivaji of North East: जानिए कौन थे वीर योद्धा लचित बोरफुकन, जिन्होंने हराया मुगलों को, कहलाते हैं पूर्वोत्तर के शिवाजी

असम के प्रसिद्ध युद्ध नायक लचित बोरफुकन की 400वीं जयंती राष्ट्रीय राजधानी में 23 से 25 नवंबर तक मनाई जाएगी, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समापन समारोह में शामिल होंगे.

Lachit Borphukan
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 21 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 2:07 PM IST
  • मुगलों को हराकर गुवाहाटी से बाहर किया
  • छात्रों के कोर्स में जुड़ेगी वीर लचित की शौर्य गाथा

असम में भाजपा सरकार शिवाजी की तर्ज पर अहोम राजवंश के जनरल लचित बोरफुकन के उत्सव और सम्मान की योजना बना रही है. मराठा राजा शिवाजी की तरह, बोरफुकन को मुगलों से लड़ने के लिए जाना जाता है. बोरफुकन ने गुवाहाटी के पास ब्रह्मपुत्र के तट पर 1671 में सराईघाट की लड़ाई में मुगलों को हराया था.

बुधवार को, मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा ने अहोम जनरल के सम्मान में प्रसिद्ध गायक जुबिन गर्ग द्वारा रचित एक थीम गीत जारी किया. यह उनकी 400 वीं जयंती के चल रहे उत्सव के हिस्से के रूप में किया गया. शर्मा ने कहा कि यह गीत 'महावीर' लचित के बलिदान को श्रद्धांजलि है, उम्मीद है कि यह लोगों के बीच "राष्ट्रवादी उत्साह" को बढ़ावा देगा. 

इससे पहले, फरवरी में, तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने गुवाहाटी में साल भर चलने वाले उत्सव का उद्घाटन किया, और युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक युद्ध स्मारक की आधारशिला रखी थी.

छात्रों के कोर्स में जुड़ेगी वीर लचित की शौर्य गाथा
सरकारी की योजना जोरहाट में एक लचित बरफुकन मैदान तैयार करने की भी है. यह जमीन लोगों ने दान दी है और इसे तैयार करने के लिए 12 करोड़ रुपये दिए जाएंगे. नई दिल्ली में एक केंद्रीय कार्यक्रम भी होगा, जिसमें प्रधान मंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और अन्य शामिल होंगे. 

इसमें 'अहोम शासन के स्वर्ण युग" पर एक संगोष्ठी होंगी. साथ ही, बोरफुकन की 150 फीट ऊंची कांस्य प्रतिमा सहित 160 करोड़ रुपये की परियोजना भी तय की गई है. और तो और राज्य के शैक्षणिक पाठ्यक्रम में 'वीर लचित' की कहानी को शामिल किया जाएगा. 

हाल ही में बोरफुकन की तुलना शिवाजी से करते हुए, असम के सूचना मंत्री पीयूष हजारिका ने खेद व्यक्त किया कि मुगलों के खिलाफ बोरफुकन के योगदान को उतनी प्रसिद्धि नहीं मिली जितना उनका हक थी. हजारिका ने कहा कि मुगलों ने "भारत के इन दो नायकों को छोड़कर" कई लोगों को हराया और शर्मा सरकार देश भर में बोरफुकन के इतिहास का सही मायने में सम्मान और प्रसार करने के लिए काम कर रही है. 

क्या है इतिहास 
अहोम राजाओं ने 13वीं सदी की शुरुआत से लेकर 19वीं सदी की शुरुआत तक लगभग 600 वर्षों तक, असम के बड़े हिस्से पर शासन किया. इस समृद्ध राज्य ने 1615-1682 तक मुगलों के साथ लगातार संघर्ष किया. अहोम सेना के प्रमुख सैनिक थे लचित बोरफुकन. उनका जन्म 1622 में प्रागज्योतिषपुर में हुआ था. उन्हें असम से मुगलों को बाहर निकालने का श्रेय दिया जाता है. 

1671 ईस्वी में मुगल साम्राज्य और अहोम साम्राज्य के बीच हुई उस लड़ाई को 'सराईघाट का युद्ध' कहा जाता है. उस समय अहोम राजा प्रताप सिंह ने लचित बोरफुकन को अहोम सेना के प्रधान सेनापति के रूप में नियुक्त किया था. मुगलो खुले में लड़ाई पसंद करते थे लेकिन बोरफुकन अपने क्षेत्र की रूपरेखा को बेहतर जानते थे और उन्होंने गुरिल्ला युद्ध की तैयारी की. 

मुगलों को हराकर गुवाहाटी से बाहर किया
सराईघाट की लड़ाई इसलिए लड़ी गई थी, क्योंकि लचित ने मुगलों के कब्जे से गुवाहाटी को छुड़ा कर उसपर फिर से अपना अधिकार कर लिया था. उन्होंने मुगलों को गुवाहाटी से बाहर धकेल दिया था. इसी गुवाहाटी को फिर से पाने के लिए मुगलों ने अहोम साम्राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था. 

मुगलों की सेना में 1,000 से अधिक तोपों के अलावा नौकाओं का एक बड़ा बेड़ा था. पर फिर भी लचित की रणनीति के आगे उनकी कोई चाल न चली और मुगल लगातार हारते रहे.  

खराब तबियत के बावजूद युद्ध पर गए लचित
युद्ध के दौरान लचित की तबियत काफी बिगड़ने लगी थी. चिकित्सकों ने युद्ध के एक महत्वपूर्ण चरण में लचित को न जाने की सलाह दी क्योंकि वह बहुत बीमार थे. जिस कारण अहोम सेना का मनोबल गिरने लगा. लेकिन अंतिम लड़ाई के दौरान अपने जवानों के जज्बे को जिंदा रखने के लिए उन्होंने कहा कि उनका बिस्तर नाव पर लगा दिया जाए. 

उनके इस फैसले से उनके सैनिकों का हौसला वापस आ गया. अहोम सेना ने युद्ध जीता. लेकिन युद्ध समाप्त होने के कुछ समय बाद ही लचित की मृत्यु हो गई. असम में लचित बोरफुकन की वीरता को याद करने के लिए हर साल लचित देव उत्सव मनाया जाता है. 

 

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