कैसे बनते हैं चुनावी गाने, सुनें धुन बनाने वालों की जुबानी

उधम सिंह बताते हैं एक गाने को बनाने के लिए कितना वक्त लगेगा, इसका कोई सेट पैमाना नहीं है. मुख्य काम है गाना लिखना. गाना लिखने के लिए वह प्रत्याशी या पार्टी के साथ बैठकर उनसे वो मुख्य बातें पूछते हैं. जो गाने में होने जरूरी हैं या जिनके आधार पर एक गाना तैयार किया जाना है. गाना लिखने के बाद उसकी धुन तैयार होती है.

कैसे बनते हैं चुनावी गाने, सुनें धुन बनाने वालों की जुबानी
मनीष चौरसिया
  • लखनऊ ,
  • 27 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 12:18 PM IST
  • पारंपरिक भाषा, शब्द और संगीत पर जोर
  • सभी पार्टियों के लिए बनते हैं गाने

चुनावी राज्यों में मतदान की तारीख नजदीक आते ही माहौल गर्म हो चुका है. बड़े-बड़े नेता डोर टू डोर कैम्पेन में जुटे हैं और अपनी पार्टी के लिए वोट मांग रहे हैं. लेकिन यह तो महज ट्रेलर है पिक्चर तो अभी बाकी है और कोई भी पिक्चर बिना गानों के पूरी नहीं होती. चुनाव में भी चुनावी गाने जोर-शोर से अपना हल्ला मचा रहे हैं. बड़े-बड़े लाउडस्पीकर और साउंड बॉक्स पर सुनाई पड़ने वाली धुन आखिर बनती कहां है. आइए जानते हैं...

पारंपरिक भाषा, शब्द और संगीत पर जोर
उधम सिंह नागर पश्चिमी यूपी के एक मशहूर लोक गायक हैं. 15 साल की उम्र से वह लोकगीत गाते आ रहे हैं. उधम सिंह खुद गाने लिखते हैं. संगीत भी देते हैं और गाते भी हैं. उधम सिंह ने अब तक 100 से ज्यादा चुनावी गाने गाए हैं. इन चुनावों में भी उन्होंने समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों और पार्टी के लिए गाने गाए हैं. उधम सिंह नागर बताते हैं कि किसी भी गाने में पारंपरिक भाषा, शब्द और संगीत का ही इस्तेमाल किया जाता है, ताकि लोकल जनता उससे खुद को जोड़ पाए.

कैसे बनते हैं गाने
उधम सिंह बताते हैं एक गाने को बनाने के लिए कितना वक्त लगेगा, इसका कोई सेट पैमाना नहीं है. मुख्य काम है गाना लिखना. गाना लिखने के लिए वह प्रत्याशी या पार्टी के साथ बैठकर उनसे वो मुख्य बातें पूछते हैं. जो गाने में होने जरूरी हैं या जिनके आधार पर एक गाना तैयार किया जाना है. गाना लिखने के बाद उसकी धुन तैयार होती है, और फिर उसे स्टूडियो में रिकॉर्ड किया जाता है. उधम कहते हैं कि कई बार लिखने का मन नहीं करता ऐसे में एक गाने को बनाने में एक एक हफ्ते का टाइम भी लग जाता है. लेकिन अगर मूड अच्छा है ठीक है तो किसी गाने को लिखने में 1 घंटा भी नहीं लगता.

जिसके लिए गाते हैं क्या उसको ही वोट करते हैं?
इस सवाल के जवाब में उधम सिंह नागर हंस पड़ते हैं. उधम सिंह कहते हैं कि वह अपने प्रोफेशन को राजनीतिक विचारों से बिल्कुल अलग रखते हैं. चुनाव के वक्त ऐसा बहुत कम होता है कि किसी से गाने के पैसे ना लिया जाए हम जिसके लिए भी गाना तैयार करते हैं. उनसे फीस लेते हैं इसी तरह हम गाना किसी के लिए भी लिखें. लेकिन वोट उसी को करते हैं जिन्हें वोट ठीक समझते हैं.

उधम सिंह की मंडली में ढोलक बजाने वाले नवीन नागर कहते हैं- इस बार उनके लिए चुनाव का मुद्दा बेरोजगारी और महंगाई है. वह इसी के आधार पर अपना वोट देंगे रही बात काम की तो वह अपनी जगह है. हम काम और राजनीति को मिक्स नहीं करते.

मंडली में मौजूद संजू कहते हैं कि उनके गांव की सड़क सालों से खराब पड़ी है आज तक उसे ठीक करवाने की कोशिश किसी भी नेता ने नहीं की. संजू कहते हैं,'मेरे लिए तो ये भी वोट करने का एक मुद्दा है. विकास की बात तो सब करते हैं लेकिन सिर्फ चुनाव के वक्त. नेता हमारे पास चुनाव के टाइम ही आते हैं या तो गाना बनवाने या फिर वोट मांगने बाद में कोई दिखाई भी नहीं पड़ता.

पक्ष विपक्ष दोनों के ही पास चुनावी मुद्दों की कमी नहीं है लेकिन चुनावी गानों के जरिए नेता जनता के दिल तक पहुंचना चाहते हैं. इसमें वह कितने सफल होंगे इसका जवाब कम से कम नतीजों के पहले मिलना तो मुश्किल है.

 

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