नौकरी छोड़ शुरू किया अपना काम, मक्के के छिलका से बनाना शुरू किया कप-प्लेट... रेलवे की तरफ से मिला 30 लाख का ऑर्डर

मुजफ्फरपुर के युवक ने किसानों के वेस्ट मक्के के बाल के छिलके से बनाया डिस्पोजल प्लेट. एम टेक की पढ़ाई कर हैदराबाद में अपनी जॉब छोड़ अपने गांव में ही शुरू कर दिया काम. अब मिला पेटेंट प्रमाण पत्र तो चारों ओर होने लगी चर्चा.

gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 25 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 8:48 AM IST

बिहार के मुजफ्फरपुर के रहने वाले नाज़ ओजैर, मक्के का छिलका, जिसे किसान फेंक देते हैं, उससे ऐसा प्रोडक्ट बना रहे है जिसे देख सभी हक्का बक्का हैं. वे मक्के के बाल से कप और प्लेट बना रहे हैं, वो भी कम लागत में. उनका बनाया यह प्रोडक्ट मार्केट में मिलने वाली सिंगल यूज प्लास्टिक को कड़ी टक्कर दे रहा है. किसान भी जिस मक्के के छिलके को फेंक देते थे. अब उसे बेचकर पैसा कमा रहे हैं.

नाज के प्रोडक्ट को मिली कामयाबी
मक्के के छिलके से बने प्रोडक्ट की सप्लाई अभी पूजा-पाठ में प्रसाद के लिए हो रही है. नाज को रेलवे से भी 30 लाख का ऑर्डर मिला है. मक्के के छिलके से बना प्रोडक्ट पर्यावरण के लिए लाभकारी है. प्लास्टिक के विकल्प के रूप में इसका इस्तेमाल कर कैंसर जैसे बीमारी से बचा जा सकता हैं. यह प्रोडक्ट सौ प्रतिशत स्वदेशी है.

10 साल किया शोध
नाज पेशे से इंजीनियर हैं. जो पिछले दस सालों से प्लास्टिक के विकल्प पर शोध कर रहे थे. नाज ने बताया कि मैंने बास, केला, पपीता, इत्यादी पौधों पर पांच साल शोध किया फिर अगला पांच साल सिर्फ मक्के पर शोध किया. वह बताते हैं कि उनका एक भांजा कैंसर से मर गया.  उसने कभी कोई नशा नहीं किया था. 

प्लास्टिक है कैंसर को न्यौता
नाज कहते हैं कि रिसर्च में पता चला है कि अगर हम प्लास्टिक में कुछ खाते हैं तो उससे 32 प्रकार की कैंसर होने की संभावना रहती है. जैसे की पेपर कप में हम चाय पीते हैं तो इससे 25000 प्लास्टिक के कण हमारे शरीर में चले जाते हैं. 

नाज बताते हैं कि उनका सपना था की कुछ ऐसी चीज़ों की मदद से ऐसा किया जाए जिसके जरिए प्लास्टिक के कम से कम दस प्रॉडक्ट्स को रीप्लेस किया जा सके. तभी वह अपनी मेहनत को सफल मानेंगे. 

कैसे आया मक्के का आईडिया
उन्होंने बताया कि एक दिन वे दोस्त की शादी में गए हुए थे. तो उन्होंने देखा कि एक कार मक्के की खेत में मक्के की बाली पर चढ़ाती हुई चली जाती है. उसी बाली पर कई और गाड़ियां भी चढ़ते हुए ओवरटेक कर गई. 

तब उन्होंने उस मक्के की बाली को हाथ में लिया और गौर से अध्यन किया तो पाया कि मक्के का दाना तो कुछ निकल गया था पर उसके पत्ते पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. तबसे उन्होंने शोध चालू कर दिया और पिछले पांच सालों से सिर्फ मक्के पर ही शोध कर रहे थे. वह कहते हैं कि आज मैं इस स्थिति में हूं की प्लास्टिक के एक सौ प्रॉडक्ट्स को रीप्लेस कर सकता हूं. साथ ही उनके पेटेंट को प्रमाण पत्र भी मिल चुका है.

-मणि भूषण शर्मा की रिपोर्ट

 

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