5 अप्रैल को हर साल भारत में National Maritime Day मनाया जाता है. क्योंकि इस दिन साल 1919 में पहली बार भारत के पहले कमर्शियल पोत, एसएस लॉयल्टी ने समुद्र में यात्रा शुरू की थी. और फिर साल 1964 में 5 अप्रैल को ही बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्रालय (The Ministry of Ports, Shipping and Waterways) की शुरुआत हुई थी. SS Loyalty जहाज मुंबई से लंदन के लिए रवाना हुआ था.
आपको बता दें कि इस दिन को भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में समुद्री व्यापार के योगदान और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भारत के रणनीतिक महत्व की सराहना करने के लिए मनाया जाता है. हालांकि, भारत में शिपिंग इंडस्ट्री का इतिहास बहुत ही समृद्ध रहा है.
साल 1919 में 5 अप्रैल को स्वस्तिक के साथ एक नीला झंडा साफ आसमान में गर्व से लहरा रहा था. यह झंडा था सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी का था, और इसे एसएस लॉयल्टी नामक जहाज के ऊपर फहराया गया था. और जहाज मुंबई से लंदन की ओर जाने की तैयारी कर रहा था. उस समय जहाज तो और भी थे लेकिन SS Loyalty की बात अलग थी. क्योंकि यह जहाज स्वदेशी थी.
शिपिंग इंडस्ट्री पर था अंग्रेजों का अधिपत्य
उस जमाने में किसी भारतीय जहाज का समुद्र में उतरना और यात्रा करना बहुत बड़ी बात थी. दरअसल अंग्रेजी शासक समुद्र में सिर्फ अपनी अधिपत्य चाहते थे, इसलिए उन्होंने बहुत सी भारतीय शिपिंग कंपनियों को बंद करा दिया था. उन्होंने भारत में प्रचलित ब्रिटिश शिपिंग कंपनियों - ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेविगेशन (बीआई) और पी एंड ओ का फायदा उठाया और शिपिंग इंडस्ट्री में किसी भी भारतीय को नहीं टिकने दिया. उन्होंने भारतीयों पर बैन नहीं लगाया लेकिन भारतीयों के रास्ते में इतनी मुश्किलें खड़ी कीं कि कंपनी बंद करना पड़ी.
आपको बता दें कि साल 1892 में, सर जमशेदजी टाटा ने भारत, चीन और जापान के बीच एक स्टीमर सेवा शुरू की थी. लेकिन ब्रिटिश कंपनियों ने इसकी प्रतिक्रिया में अपनी माल की दरों को उन्नीस रुपये प्रति टन से घटाकर दो रुपये कर दिया ताकि टाटा अपनी कंपनी बंद कर दें. ब्रिटिश साम्राज्य ने हमेशा शिपिंग इंडस्ट्री में आने वाले भारतीयों के रास्ते में बहुत सारी बाधाएं डालीं - चाहे वह यात्री, कार्गो या कागजी कार्रवाई हो. और इसलिए, धीरे-धीरे, 1891 और 1919 के बीच सौ से अधिक भारतीय कंपनियों ने खुले समुद्र में अपने जहाज को उतारने की कोशिश की और विफल रहे. लेकिन एक ऐसा देशभक्त आया जिसे ब्रिटिशर्स भी नहीं रोक पाए.
दूरदर्शी थे सेठ वालचंद
सेठ वालचंद हीराचंद दोशी एक दूरदर्शी देशभक्त थे. उन्होंने स्वतंत्रता से पहले भारत में औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व किया. एक साहसी, दृढ़ विश्वास और आत्म-विश्वास वाले व्यक्ति, जिन्होंने स्वतंत्र भारत की औद्योगिक जरूरतों को न सिर्फ समझा बल्कि इन्हें पूरा करने में भी अहम भूमिका निभाई. वालचंद ने सभी मुश्किलों के बावजूद औद्योगीकरण का बीड़ा उठाया.
23 नवंबर, 1882 को शोलापुर, महाराष्ट्र में जन्मे वालचंद, वालचंद समूह के संस्थापक थे. उन्होंने भारत का पहला आधुनिक शिपयार्ड, पहला विमान कारखाना और पहला कार कारखाना स्थापित किया. उन्होंने सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी लिमिटेड को शुरू किया. वह निर्माण, गन्ना बागान, चीनी कारखानों, कन्फेक्शनरी, इंजीनियरिंग कंपनियों और कई अन्य व्यवसायों से जुड़े हुए थे.
वालचंद सबसे पहले कंस्ट्रक्शन बिजनेस से जुड़े. उन्होंने ही मुंबई से पुणे तक रेलवे मार्ग के लिए भोर घाटों के माध्यम से सुरंगों का निर्माण किया और तानसा झील से मुंबई तक पानी के पाइप बिछाए. इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे दूसरे सेक्टर्स में अपनी पहुंच बनाई. हालांकि, साल 1919 में उन्होंने एक बदलाव की नींव रखी.
रखी भारतीय शिपिंग कंपनी की नींव
दरअसल, 1919 में पहले विश्व युद्ध के बाद एक ब्रिटिश व्यवसायी से वालचंद हीराचंद दोशी को जहाज एसएस लॉयल्टी के बारे में पता चला. यह पहले एक ब्रिटिश शिप था. लेकिन साल 1914 में ग्वालियर के महाराजा माधो राव सिंधिया ने इसे खरीदा था. उन्होंने इसका नाम एसएस लॉयल्टी रखा और युद्ध को ध्यान में रखते हुए इसे एक सैन्य अस्पताल के जहाज में बदल दिया.
लेकिन अब युद्ध खत्म हो चुका था और सिंधिया पच्चीस लाख रुपये में जहाज बेचने के लिए तैयार थे. लेकिन वालचंद के पास इतना पैसा नहीं था. उस समय वह लगभग 28 साल के थे. वह पहले नरोत्तम मोरारजी के पास गए और उसके बाद सर सांवलदास और किलाचंद देवचंद से मिले; ये लोग बंबई के सूती मिल उद्योग और व्यापारिक बिरादरी में प्रभावशाली नाम थे.
नरोत्तम मोरारजी और किलाचंद देवचंद के साथ मिलकर उन्होंने एसएस लॉयल्टी को खरीदा. उनका अनुमान था कि युद्ध के बाद शिपिंग इंडस्ट्री बढ़ेगी. और मार्च 1919 में एक नई शिपिंग कंपनी का जन्म हुआ - सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी. वालचंद ने सिंधिया नाम लोगों को आकर्षित करने के लिए रखा. हालांकि, कंपनी से सिंधिया परिवार का कुछ लेनादेना नहीं था.
महात्मा गांधी ने फोन करके दी शुभकामनाएं
वालचंद ने कंपनी तो शुरू कर ली. लेकिन उनकी मुश्किलें अभी शुरू ही हुई थीं. आखिरकार यह अभी भी एक अस्पताल का जहाज था और वालचंद ने इंग्लैंड पहुंचने के बाद इसे एक यात्री सह मालवाहक जहाज में बदलने का फैसला किया. यात्री जुटाने के लिए भी उन्होंने बहुत मेहनत की क्योंकि अंग्रेज भारतीय जहाजों को यात्री भी नहीं मिलने देते थे. 5 अप्रैल, 1919 को आखिरकार वह सुबह हुई, जब एसएस लॉयल्टी समुद्र में उतरा.
इस नए सफर के लिए खुद महात्मा गांधी ने वालचंद को शुभकामनाएं दीं. कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भी उन्हें सपोर्ट किया. इस प्रकार पहले भारतीय स्वामित्व वाले व्यापारी जहाज की पहली क्रॉस महासागर यात्रा शुरू हुई. यह अरब सागर के पार चला गया और स्वेज नहर के माध्यम से यूरोप में अपना रास्ता बना लिया. महीने के तेईसवें या चौबीसवें दिन, यह मार्सिले के फ्रांसीसी बंदरगाह पर डॉक किया गया. लेकिन जब जहाज ने इंग्लैंड में प्रवेश किया, तो कोई भी उनके जहाज को ठीक करने के लिए तैयार नहीं था. वजह साफ थी - कोई भी अंग्रेज ब्रिटिश इंडियन स्टीमशिप कंपनी और उसके मालिक - जेम्स मैके को नाराज नहीं करना चाहता था. जैम्स उस समय इंग्लैंड में दसवां सबसे अमीर था और उद्योग जगत में 'नेपोलियन ऑफ शिपिंग' कहलाता था.
वालचंद ने नहीं मानी हार
वालचंद हीराचंद ने जेम्स के आगे घुटने नहीं टेके. उन्होंने जैसे-तैसे जहाज को रिपेयर कराया. लेकिन इसमें काफी पैसा लगा. पर वालचंद झुकने को तैयार नहीं थे. आखिरकार उनका जहाज इंग्लैंड से वापस बॉम्बे जाने को तैयार था लेकिन उन्हें यात्री मिलने मुश्किल थे. अंत में, वालचंद और मोरारजी अपने निजी प्रयासों से यात्रियों को मनाने में कामयाब रहे. कार्गो होल्ड में कुछ रखने के लिए उन्होंने अपने पैसे से सीमेंट और कच्चा लोहा भी खरीदा.
और इस प्रकार, कई चुनौतियों के बाद एसएस लॉयल्टी 1919 के अंत में एक ऐतिहासिक पहली यात्रा पूरी करते हुए बंबई पहुंची. हालांकि, बाद में एसएस लॉयल्टी ज्यादातर कार्गो शिप की तरह इस्तेमाल हुई. लेकिन सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी जारी रही. आजादी के बाद कंपनी को आगे बढ़ने के कई मौके मिले. साल 1953 तक कंपनी ने भारतीय तटीय यातायात के 21% हिस्से पर अपना कब्जा कर लिया था.
शुरू किया विशाखापत्तनम शिपयार्ड
वालचंद का यह भी मानना था कि देश में एक शिपयार्ड की सख्त जरूरत है और 1940 में विशाखापत्तनम में इस पर काम शुरू किया. ब्रिटिशर्स से मिल रही चुनौतियों के बावजूद 21 जून 1941 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जो उस समय कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष थे, ने शिपयार्ड की आधारशिला रखी. 1948 में जवाहरलाल नेहरू द्वारा स्वतंत्रता के तुरंत बाद "जल-उषा" जहाज लॉन्च किया गया. हालांकि, शिपयार्ड कुछ महीने बाद सरकारी नियंत्रण में चला गया और 1961 में पूरी तरह से राष्ट्रीयकृत हो गया और इसका नाम बदलकर हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड कर दिया गया.
उन्होंने ही दिसंबर 1940 में मैसूर राज्य में बंगलौर में हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट शुरू किया. हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट निर्मित विमान जैसे हार्लो ट्रेनर, ग्लाइडर, हॉक-पी36, हॉर्लो-पीसी5 आदि थ. अप्रैल 1941 तक, भारत सरकार ने इस कंपनी पर एक-तिहाई स्वामित्व हासिल कर लिया और अप्रैल 1942 तक, कंपनी के शेयरधारकों को पर्याप्त रूप से मुआवजा देकर कंपनी का राष्ट्रीयकरण कर दिया. बाद में, हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट का नाम बदलकर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड कर दिया गया. उन्होंने कार कारखाना भी देश में शुरू किया था.
शिपिंग, एविएशन और ऑटोमोबाइल में उनकी उद्यमशीलता ने उन्हें 'भारत में परिवहन के जनक' (‘Father of transportation in India’) की उपाधि दी गई है.