बेहद खास है गुजरात की ये पटोला साड़ी, 100 साल तक चलता है कपड़ा, जानिए और क्या है खासियत

गुजरात के पाटन में बनने वाली ये साड़ी बेहद खास है. इस साड़ी की सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये 100 साल तक चल सकती है. इसके अलावा इसके कीमत 2 लाख से शुरू होकर 4 लाख तक है.

पटोला साड़ी
gnttv.com
  • पाटन,
  • 23 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 2:40 PM IST
  • हस्तकला से बनी है पूरी साड़ी
  • 900 साल पुराना है पटोला साड़ी का इतिहास

पटोला साड़ी नाम सुनकर आपको थोड़ा अजीब लगेगा. लेकिन यह साड़ी अपने आप में बेहद खास है. साड़ी की बनावट से लेकर कीमत और एक साड़ी के बनाने में कितना समय लगता है, अगर ये आप जानेंगे तो आप दंग रह जाएंगे. आप सोच रहे होंगे की ऐसा क्या है इस साड़ी में तो आइये जानते हैं. 

नवरात्रि के समय में शायद आपने भी इस गाने पर खूब गरबा किया होगा 'छेलाजी रे मारे हारु पाट थी पटोला मोंघा लावजो'  लेकिन क्या आपने पटोला क्या होता है, कभी समझने की कोशिश की है, आपने महँगी साड़ी 40 से 50 हजार की रेंज में देखी होगी या खरीदी भी होगी. मगर पटोला साड़ी की कीमत 2 लाख से शुरू होती है और 4 लाख तक जाती है. ये साड़ी बेहद ही खासॉ और खूबसूरत है. महंगी पटोला साड़ी बनाई कैसे जाती है, ये भी जान लीजिए.

हस्तकला से बनी है पूरी साड़ी
पटोला बनाने वाले भरतभाई साल्वी का कहना है की पटोला साड़ी का पूरा काम हाथ से होता है. यह एक हैंडीक्राफ्ट है. हैंडलूम पटोला बनाने का प्रोसेस बहुत ज्‍यादा जटिल है. लेकिन उन लोंगों के लिए जो इस कला को नहीं जानते हैं. अगर एक भी धागा इधर से उधर हो जाए तो पूरी साड़ी खराब हो जाती है. इस साड़ी को बनाने में कंप्यूटराइज्ड मशीन या पावरलूम का इस्तेमाल नहीं होता है. पूरी तरह हाथ से बनने वाली यह साड़ी तकरीबन 4 से 6 महीने में बनकर तैयारी होती है और इसकी कीमत 4 लाख रुपए तक है. सबसे खास बात यह है प्‍योर सिल्‍क से बनने वाली ओरिजनल पटोला साड़ी पूरी दुनिया में सिर्फ गुजरात के पाटन में ही बनती है. 900 साल पुरानी इस आर्ट के खरीदार देश ही नहीं विदेश में भी काफी ज्‍यादा हैं.  इतनी मंहगी पटोला साड़ी होने के कारण आप सोच रहे होंगे की इनकी बड़ी इंडस्ट्री होगी. लेकिन आप ये जानकर चौक जाएंगे की पाटन पटोला साड़ी की कोई इंडस्‍ट्री नहीं है. यह व्यापार केवल ऑर्डर पर ही चलता है और पूरे देश में केवल 1 परिवार ही है जो पटोला बनाने का काम करते हैं.  

900 साल पुराना है पटोला साड़ी का इतिहास 


पटोला आर्ट इतनी ज्यादा अनमोल है कि 1934 में भी एक पटोला साड़ी की कीमत 100 रुपए थी. पाटन पटोला साड़ी का इतिहास 900 साल पुराना है. कहा जाता है कि 12वीं शताब्दी में सोलंकी वंश के राजा कुमारपाल ने महाराष्ट्र के जलना से बाहर बसे 700 पटोला बुनने वालों को पाटन में बसने के लिए बुलाया और इस तरह पाटन पटोला की परंपरा शुरू हुई थी. राजा अपने होने वाले खास अवसरों पर पटोला सिल्‍क का पट्टा ही पहनते थे. पाटन में केवल 1 ऐसा परिवार हैं, जो ओरिजनल पाटन पटोला साड़ी बनाने की कला को संजोए हुए है और इस विरासत को आगे बढ़ा रहा है.

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल पटोला परिवार से मिले 


पीयूष गोयल का हाल ही में गुजरात दौरा था. गुजरात पहुंचकर उन्होंने पटोला परिवार से मुलाकात की. साथ ही पटोला बनाने की कला भी सीखी. मात्र 1 ही परिवार बचा है जो इस कला को बचाए हुए है. जिसको लेकर पीयूष गोयल ने भी चिंता जताई. ऐसे में पटोला महंगा होने के कारण अब नकली पटोला भी बनता है. जिसके कारण लोगो तक असली पटोला क्या होता है ये नही पहुंच पाता है. पीयूष गोयल ने पटोला बुनकर भरतभाई को ये भी कहा कि सरकार की ओर से इस पटोला की कला को आगे बढ़ाने के लिए हर सम्भव मदद की जाएगी और एक ट्रेनिंग सेंटर खोलने में भी मदद के लिए सरकार आगे आएगी. ताकि 900 साल पुरानी कला नष्ट न हो. 

पटोला साड़ी की खासियत
पटोला साड़ी को टाइंग, डाइंग और वीविंग तकनीक से बनाया जाता है. पटोला साड़ी की सबसे बड़ी खासियत है कि इसे दोनों तरफ से पहना जा सकता है. इस आर्ट को 'डबल इकत' आर्ट कहते हैं. डबल इकत में धागे को लंबाई और चौड़ाई दोनों तरह से आपस में क्रॉस करते हुए फंसाकर बुनाई की जाती है. डबल इकत को मदर ऑफ ऑल इकत भी कहा जाता है. इसके चलते साड़ी में ये अंतर करना मुश्किल है कि कौन सी साइड सीधी है और कौन सी उल्टी. इस जटिल बुनाई के चलते ही यह आर्ट अभी भी देश-विदेश में फेमस है और काफी महंगी भी है. पटोला साड़ी की दूसरी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसका रंग कभी फेड नहीं होता और साड़ी 100 साल तक चलती है. 

(पाटन से विपिन प्रजापति की रिपोर्ट)

 

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