रानीखेत में बना देश का पहला 'ग्रास कन्सर्वेटरी', घास की 90 प्रजातियां है उपलब्ध

परियोजना का उद्देश्य घास प्रजातियों के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करना, उनके संरक्षण को बढ़ावा देना और क्षेत्र में रिसर्च की सुविधा प्रदान करना है. चतुर्वेदी ने कहा कि यह पहल बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि नवीनतम शोधों में यह साबित हो गया है कि घास के मैदान वन भूमि की तुलना में 'कार्बन सोखने' में अधिक प्रभावी हैं.

Grass representative image
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 14 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 4:11 PM IST
  • दो एकड़ क्षेत्र में है फैला हुआ
  • 90 विभिन्न घास प्रजातियां उगाई गई हैं

अल्मोड़ा जिले के रानीखेत में आज देश के पहले  भारत के पहले 'ग्रास कन्सर्वेटरी' का उद्घाटन किया गया. यह कंजर्वेटरी दो एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है. मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी ने कहा कि केंद्र सरकार की CAMPA योजना के तहत वित्त पोषित, उत्तराखंड वन विभाग के रिसर्च विंग द्वारा तीन साल में कंजर्वेटरी विकसित की गई थी. उन्होंने कहा कि संरक्षण क्षेत्र में महत्वपूर्ण वैज्ञानिक, पारिस्थितिक, औषधीय और सांस्कृतिक महत्व की लगभग 90 विभिन्न घास प्रजातियां उगाई गई हैं.

परियोजना का उद्देश्य घास प्रजातियों के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करना, उनके संरक्षण को बढ़ावा देना और क्षेत्र में रिसर्च की सुविधा प्रदान करना है. चतुर्वेदी ने कहा कि यह पहल बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि नवीनतम शोधों में यह साबित हो गया है कि घास के मैदान वन भूमि की तुलना में 'कार्बन सोखने' में अधिक प्रभावी हैं. उन्होंने कहा कि यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि घास के मैदान विभिन्न प्रकार के खतरों का सामना कर रहे हैं और उनका क्षेत्र सिकुड़ रहा है, जिससे कीड़ों, पक्षियों और उन पर निर्भर स्तनधारियों के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा है.

उन्होंने कहा कि सभी फूलों के पौधों में घास आर्थिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उनके पौष्टिक अनाज और मिट्टी बनाने का कार्य होता है. संरक्षण क्षेत्र में घास की प्रजातियों की सात अलग-अलग श्रेणियां हैं, जिनमें उनके सुगंधित, औषधीय, चारे, सजावटी, कृषि और धार्मिक उपयोगों के लिए जाना जाता है. 

 

Read more!

RECOMMENDED