नवाबों से नेहरू तक, सैफ अली खान की शाही संपत्ति की जंग! अरबों की प्रॉपर्टी फिर भी सैफ के हिस्से केवल 2-3%? जानिए पूरी इनसाइट

भोपाल की यह संपत्ति भोपाल रियासत के अंतिम नवाब हामिदुल्लाह खान की थी, जिनके पास भोपाल और उसके आसपास हजारों एकड़ जमीन के अलावा कई शाही महल और इमारतें थीं. इनमें फ्लैग स्टाफ हाउस, नूर-उस-सबाह पैलेस होटल, दार-उस-सलाम और अहमदाबाद पैलेस जैसी बेशकीमती संपत्तियां शामिल हैं.

सैफ अली खान संपत्ति विवाद
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 07 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 4:05 PM IST

बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता और पटौदी खानदान के वारिस सैफ अली खान को एक बड़ा झटका लगा है! मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने भोपाल की शाही संपत्ति को लेकर 25 साल पुराने निचली अदालत के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें सैफ और उनके परिवार को इस संपत्ति का असली मालिक माना गया था. यह संपत्ति भोपाल के अंतिम नवाब हामिदुल्लाह खान की थी, जो सैफ के परदादा थे. अब कोर्ट ने इस मामले में नए सिरे से सुनवाई का आदेश दिया है और इसे एक साल के भीतर सुलझाने को कहा है. 

वरिष्ठ वकील जगदीश चव्हाण, जो पहले सैफ के पिता मंसूर अली खान का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, ने खुलासा किया है कि इस फैसले के बाद सैफ और उनके परिवार को भोपाल की इस विशाल संपत्ति में सिर्फ 2-3% हिस्सा ही मिल सकता है. 

भोपाल की शाही संपत्ति का इतिहास
भोपाल की यह संपत्ति भोपाल रियासत के अंतिम नवाब हामिदुल्लाह खान की थी, जिनके पास भोपाल और उसके आसपास हजारों एकड़ जमीन के अलावा कई शाही महल और इमारतें थीं. इनमें फ्लैग स्टाफ हाउस, नूर-उस-सबाह पैलेस होटल, दार-उस-सलाम और अहमदाबाद पैलेस जैसी बेशकीमती संपत्तियां शामिल हैं. यह संपत्ति इतनी विशाल और मूल्यवान है कि इसकी कीमत अरबों रुपये में आंकी जाती है. लेकिन इस संपत्ति का मालिकाना हक अब सवालों के घेरे में है.

1949 में भोपाल रियासत का भारत संघ में विलय हो गया था. उस समय यह तय हुआ था कि नवाब की निजी संपत्ति उनके पूर्ण स्वामित्व में रहेगी और गद्दी का उत्तराधिकार भोपाल गद्दी उत्तराधिकार अधिनियम, 1947 के अनुसार होगा. हामिदुल्लाह खान की दो पत्नियां थीं- मायमूना सुल्तान और आफताब जहां. मायमूना सुल्तान से उनकी तीन बेटियां थीं- आबिदा सुल्तान, साजिदा सुल्तान और राबिया सुल्तान. 

क्या है उत्तराधिकार का नियम?
भोपाल गद्दी उत्तराधिकार अधिनियम के तहत संपत्ति और गद्दी सबसे बड़े पुरुष वारिस को मिलनी थी. लेकिन अगर कोई पुरुष वारिस नहीं होता, तो सबसे बड़ी बेटी को यह अधिकार मिलता. इस नियम के तहत आबिदा सुल्तान, जो हामिदुल्लाह की सबसे बड़ी बेटी थीं, इस संपत्ति और गद्दी की हकदार थीं. लेकिन 1960 में हामिदुल्लाह खान की मृत्यु से पहले ही आबिदा सुल्तान पाकिस्तान चली गई थीं. 

नियम के मुताबिक, आबिदा सुल्तान उत्तराधिकारी थीं. लेकिन चूंकि वह पाकिस्तान में रह रही थीं, उनकी संपत्ति को 'शत्रु संपत्ति' घोषित किया जा सकता था. शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 के तहत, भारत सरकार उन लोगों की संपत्तियों को जब्त कर सकती है, जो विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए थे.

साजिदा सुल्तान कैसे बनीं उत्तराधिकारी?
यहां कहानी में एक नाटकीय मोड़ आता है. हामिदुल्लाह खान की मृत्यु के बाद उनकी दूसरी बेटी साजिदा सुल्तान को उत्तराधिकारी बनाया गया. साजिदा की शादी इफ्तिखार अली खान से हुई थी, जो सैफ अली खान के दादा थे. कहा जाता है कि यह फैसला तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की इफ्तिखार अली खान से दोस्ती के कारण लिया गया था. नेहरू की इस "दोस्ती" ने साजिदा सुल्तान को नवाब का खिताब और भोपाल की संपत्ति दिला दी. 

लेकिन यह फैसला परिवार के अन्य सदस्यों को रास नहीं आया. 1970 के दशक में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रियासतों को मिलने वाली प्रिवी पर्स (निजी भत्ता) को खत्म कर दिया और शाही खिताबों को समाप्त कर दिया, तब परिवार में दरार और गहरी हो गई. 

परिवार में विवाद और कानूनी जंग
साजिदा सुल्तान को उत्तराधिकारी बनाए जाने से मायमूना सुल्तान और उनकी तीसरी बेटी राबिया सुल्तान नाखुश थीं. 1971 में उन्होंने भोपाल की निचली अदालत में संपत्ति के बंटवारे और हिसाब-किताब की मांग को लेकर मुकदमा दायर किया. उन्होंने दावा किया कि संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) के अनुसार होना चाहिए. इसके अलावा, हामिदुल्लाह खान के बड़े भाई ओबैदुल्लाह खान के परिवार ने भी इस संपत्ति में हिस्सा मांगा. 

1971 में शुरू हुआ यह मुकदमा 2000 में तब जाकर सुलझा, जब भोपाल की जिला अदालत ने फैसला सुनाया कि भोपाल गद्दी उत्तराधिकार अधिनियम, 1947 और भारत सरकार की अधिसूचना के आधार पर साजिदा सुल्तान ही संपत्ति की एकमात्र उत्तराधिकारी हैं. इस फैसले में शरीयत कानून के तहत बंटवारे को मान्यता नहीं दी गई. 

लेकिन यह फैसला टिक नहीं सका. जिला अदालत ने अपने फैसले में रामपुर रियासत के तलत फातिमा हसन मामले को आधार बनाया था, जो अब रद्द हो चुका है. रामपुर का मामला भी संपत्ति के बंटवारे को लेकर था, जिसमें अंततः शरीयत कानून के आधार पर सभी वारिसों के बीच संपत्ति बांटी गई थी. 

शत्रु संपत्ति का सवाल
2015 में इस मामले में एक नया मोड़ आया, जब शत्रु संपत्ति विभाग (Enemy Property) ने भोपाल की शाही संपत्ति की जांच शुरू की. एक शिकायत में दावा किया गया कि यह संपत्ति शत्रु संपत्ति के रूप में वर्गीकृत होनी चाहिए थी, लेकिन परिवार की राजनीतिक पहुंच के कारण इसे निजी संपत्ति के रूप में मान्यता दी गई. सैफ अली खान ने इस जांच को चुनौती दी थी.

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस संजय द्विवेदी ने अब इस मामले में नए सिरे से सुनवाई का आदेश दिया है. कोर्ट ने निचली अदालत को निर्देश दिया है कि सभी पक्षों की बात सुनकर एक साल के भीतर इस मामले का निपटारा किया जाए. अब अनुमान लगाया जा रहा है कि सैफ अली खान और उनके परिवार को इस संपत्ति में सिर्फ 2-3% हिस्सा ही मिलेगा. 


 

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