Jagdeep Dhankhar Resignation: बतौर वकील शुरू किया था करियर, होम टाउन से मारी राजनीति में एंट्री... जानिए कैसा रहा जगदीप धनखड़ का प्रोफेशनल सफर

राजस्थान के झुनझुनू जिले में 18 मई 1951 को जन्मे धनखड़ ने अपना राजनीतिक करियर भी झुनझुनू से ही शुरू किया. लेकिन इससे पहले वह एक वकील थे. आइए जानते हैं कैसा रहा है जगदीप धनखड़ का करियर.

Jagdeep Dhankhar
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 22 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 10:27 AM IST

साल 2022 में उप-राष्ट्रपति के पद पर पदासीन हुए जगदीप धनखड़ ने तीन साल तक यह जिम्मेदारी संभालने के बाद 'स्वास्थ्य संबंधी कारणों' से इस्तीफा दे दिया है. धनखड़ ने अपने इस्तीफे में लिखा कि वह मेडिकल सलाह के आधार पर यह फैसला ले रहे हैं. अपना 74वां जन्मदिन मना चुके धनखड़ ने 1989 में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया था, हालांकि सक्रिय राजनीति में वह ज्यादा लंबे समय तक नहीं रहे. आइए जानते हैं कैसा रहा है पूर्व उप-राष्ट्रपति धनखड़ का राजनीतिक करियर.

राजनेता से पहले वकील थे धनखड़
राजस्थान के झुनझुनू जिले में 18 मई 1951 को जन्मे धनखड़ ने अपना राजनीतिक करियर भी झुनझुनू से ही शुरू किया. लेकिन इससे पहले वह एक वकील थे. धनखड़ यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान से एलएलबी की डिग्री हासिल करने के बाद 1979 में राजस्थान के बार काउंसिल में शामिल हो गए. हाई कोर्ट ने धनखड़ को 1990 में सीनियर एडवोकेट नामित कर दिया और वह 2019 में पश्चिम बंगाल के गवर्नर बनने तक इस पद पर रहे. 

सन् 1990 से ही धनखड़ मुख्यतः भारत के सर्वोच्च न्यायालय में संवैधानिक विधिशास्त्र के क्षेत्र में काम करते रहे. वे भारत के विभिन्न उच्च न्यायालयों में पैरवी कर चुके हैं. वह राजस्थान हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में भी काम कर चुके हैं.  

होम टाउन से राजनीति में रखा कदम
धनखड़ अपने राजनीतिक करियर के अंतिम हिस्से में बीजेपी में शामिल हो गए. लेकिन वह कांग्रेस और जनता दल का भी हिस्सा रहे थे. धनखड़ 1989 में जनता दल के टिकट पर अपने होम टाउन झुनझुनू से सांसद बने. दो साल बाद हालांकि जनता दल की सरकार गिर गई. धनखड़ भी 1991 में कांग्रेस में शामिल हो गए. इस बार उन्होंने अजमेर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा. बाद में उन्होंने कांग्रेस के टिकट से राजस्थान विधानसभा चुनाव 1993 में किशनगढ़ सीट से जीत हासिल की.

धनखड़ ने एक बार फिर 1998 में झुनझुनू लोकसभा सीट पर अपना हाथ आज़माया, हालांकि इस बार भी उन्हें हार ही मिली. आखिर धनखड़ 2003 में बीजेपी में शामिल हो गए. पांच साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में वह पार्टी की प्रचारक समिति का हिस्सा थे. साल 2016 में उन्होंने बीजेपी के कानून और लीगल मामलों के विभाग की कमान संभाली, हालांकि तीन साल बाद ही पार्टी के साथ उनका दामन छूट गया. 

बतौर गवर्नर रही ममता से तनातनी
भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 20 जुलाई 2019 को दूसरे मोदी मंत्रिमंडल के निर्देशों के तहत धनखड़ को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया. उन्हें 30 जुलाई 2019 को कोलकाता के राजभवन में पद की शपथ दिलाई गई.

पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनने के बाद धनखड़ का राज्य सरकार और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ कई सार्वजनिक टकराव हुए. वह तीसरे बनर्जी मंत्रिमंडल के मुखर आलोचक बनकर उभरे और राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए अक्सर ट्विटर और मीडिया का सहारा लेते नजर आए. 

इसके जवाब में तृणमूल कांग्रेस ने धनखड़ को "असली विपक्ष का नेता" करार दिया. जनवरी 2022 में, मुख्यमंत्री बनर्जी ने धनखड़ को ट्विटर पर ब्लॉक कर दिया, उन पर अपने ट्वीट्स में उनका रोज़ाना ज़िक्र करने और अनैतिक व अपमानजनक व्यवहार करने का आरोप लगाया. बनर्जी और धनखड़ के बीच का यह वैमनस्य का रिश्ता आखिर 2022 में खत्म हुआ जब उन्हें उप-राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर चुना गया. 

बीजेपी ने धनखड़ को 'किसान पुत्र' के तौर पर पेश किया. धनखड़ ने 17 जुलाई 2022 को पश्चिम बंगाल के गवर्नर के तौर पर इस्तीफा दिया और अगस्त में विपक्ष की उम्मीदवार मारगरेट अल्वा को हराकर उप-राष्ट्रपति बन गए. अपने कार्यकाल में धनखड़ ने न्यायपालिका पर की गई टिप्पणी से लेकर जया बच्चन के साथ हुई बहस तक, कई मामलों के लिए सुर्खियां बटोरीं. उनपर राज्यसभा में बीजेपी का पक्ष लेने का आरोप भी लगा, हालांकि अब उनका कार्यकाल और इन आरोपों का सिलसिला, दोनों खत्म हो गए हैं. 

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