Supreme Court का बड़ा फैसला, बाहर से अपना खाना लाने पर रोक लगा सकते हैं सिनेमाघर और मल्टीप्लेक्स

मल्टीप्लेक्स के मालिकों ने 18 जुलाई, 2018 को जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें फिल्म देखने वालों को बाहर का खाना अंदर लाने की इजाजत दी गई थी.

Cinema Hall
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 04 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 7:42 AM IST
  • रद्द किया हाई कोर्ट का फैसला
  • सिनेमाघरों के मालिकों ने की थी याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मल्टीप्लेक्स को राहत देते हुए थिएटर मालिकों को अपने परिसर में बाहर के खाने और पेय पदार्थों पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने 3 जनवरी को फैसला सुनाया कि सिनेमा हॉल के मालिक भोजन और पेय पदार्थों की बिक्री के लिए नियम और शर्तें निर्धारित करने के हकदार हैं और यह निर्धारित कर सकते हैं कि लोग थिएटर परिसर के भीतर अपने घर से या बाहर से खाना ला सकते हैं या नहीं. 

रद्द किया हाई कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय के एक निर्देश को रद्द कर दिया, जिसने जुलाई 2018 में मल्टीप्लेक्स और सिनेमा हॉल मालिकों को निर्देश दिया था कि वे सिनेमाघरों के अंदर लोगों के अपना खाना और पानी ले जाने पर रोक न लगाएं. 

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने कहा कि मूवी हॉल मालिकों की निजी संपत्ति है, इसलिए उन्हें यह तय करने का अधिकार है कि क्या अंदर लाया-ले जाया जा सकता है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, सिनेमाघरों को छोटे बच्चों के साथ आने वाले माता-पिता को अपने बच्चों के लिए खाना लाने की अनुमति देनी चाहिए. साथ ही, सभी लोगों को पानी भी फ्री में उपलब्ध कराना चाहिए. 

सिनेमाघरों के मालिकों ने की थी याचिका
आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर में थिएटर मालिकों और मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं डाली थीं. जिन पर अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिनेमा हॉल के मालिक को खाने और पेय पदार्थ की एंट्री को रेगुलेट करने का अधिकार है. 

सिनेमाघरों में जो खाने-पीने की चीजें उपलब्ध हैं उन्हें खरीदना या न खरीदना फिल्म देखने वालों की पसंद पर है. दर्शक मनोरंजन के लिए मूवी हॉल जाते हैं. अगर कोई दर्शक सिनेमा हॉल में प्रवेश करता है, तो उसे सिनेमा हॉल के मालिक के नियमों का पालन करना पड़ता है और जाहिर तौर पर यह थिएटर मालिक के व्यावसायिक निर्णय का मामला है. 

 

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