दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने सड़क दुर्घटनाओं में घायल होने वाले लोगों को त्वरित सहायता देने के लिए बड़ा कदम उठाया है. एलजी सक्सेना ने मेडिको लीगल मामलों (Medico Legal Cases) को संभालने और पोस्टमॉर्टम एग्जाम (Postmortem Exam) आयोजित करने के लिए पुलिस थानों को उनके आसपास के अस्पतालों से जोड़ने के फैसले को मंजूरी दे दी है. यह कदम हाल ही में लागू किए गए आपराधिक न्याय अधिनियमों (Criminal Justice Acts) के तहत उठाया गया है.
एक बयान के अनुसार, इस पहल का उद्देश्य सड़क दुर्घटनाओं, यौन उत्पीड़न और दूसरे इमरजेंसी हालातों में त्वरित और अधिक प्रभावी चिकित्सा तथा फोरेंसिक प्रतिक्रिया सुनिश्चित करना है. ऐसे मामलों में तत्काल चिकित्सा और कानूनी हस्तक्षेप की जरूरत होती है. यह मंजूरी दिल्ली पुलिस, गृह विभाग और जीएनसीटीडी (GNCTD) के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की व्यापक अंतरविभागीय समीक्षा के बाद दी गई है.
कैसे पूरी हुई प्रक्रिया
सबसे पहले दिल्ली पुलिस ने संबंधित पुलिस थानों के साथ उनके निर्धारित अस्पतालों और वैकल्पिक अस्पतालों की एक लिस्ट पेश की. इसे स्वास्थ्य विभाग ने जरूरतों और मौजूदा चुनौतियों के आधार पर एक योजना में बदला. स्वास्थ्य विभाग के तहत गठित समिति ने पुलिस थानों और अस्पतालों के बीच बेहतर लिंकिंग की सिफारिश की ताकि प्रभावितों को तत्काल चिकित्सा उपचार तथा मेडिको कानूनी जांच में किसी तरह की देरी न हो.
गृह विभाग ने दिल्ली पुलिस और स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ मिलकर इन सिफारिशों की व्यवहार्यता और प्रभावशीलता की पूरी जांच की. इसके बाद, गृह विभाग के ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को कानून विभाग ने भी कानूनी नजरिए से परखा और जरूरी बदलाव सुझाए.
क्या हैं इस बदलाव के मायने?
यह पुनःवितरण भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता अधिनियम (Bharatiya Nagrik Suraksha Sanhita Act) 2023 की धारा 194(3) के तहत लागू किया जा रहा है. इस पहल का मतलब है कि एक अस्पताल में आने वाले सभी लीगल मामले उनसे संबंधित पुलिस थानों में दर्ज किए जाएंगे और वहीं हैंडल भी होंगे.
अस्पतालों और पुलिस थानों को लिंक करने से जवाबदेही बेहतर तरीके से तय की जा सकेगी. इस पहल को लागू करने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अपराध और दुर्घटनाओं के पीड़ितों को तत्काल चिकित्सा सुविधा मिले. इस बदलाव का एक और उद्देश्य यह है कि मेडिको-लीगल प्रक्रियाएं तेजी से पूरी की जाएं, ताकि प्रक्रिया में लगने वाले समय को कम किया जा सके और पीड़ितों को न्याय देने में किसी तरह की कोई बाधा न आए.