भारत की सबसे बड़ी और चर्चित जेलों में से एक तिहाड़ जेल अब खुद को केवल दंड देने वाली व्यवस्था से निकालकर सुधार और पुनर्वास का केंद्र बनाने की दिशा में तेजी से बढ़ रही है. पहले जेल को अपराधियों को सजा देने की जगह के रूप में देखा जाता था, अब यहां के कैदियों को काम, कौशल और सम्मानजनक जीवन की दिशा के लिए प्रेरित किया जा रहा है. जेल प्रशासन की इस नई पहल के तहत तिहाड़ जेल के कारखाने में सामान बनाए जा रहे हैं, जिनका इस्तेमाल सरकारी दफ्तरों, स्कूलों, अदालतों में हो रहा है. कैदियों को रोजगार से जोड़कर न सिर्फ उनकी मानसिकता में बदलाव लाना है, बल्कि जेल के अंदर होने वाले खर्च को भी कम करना है.
2 नई निर्माण इकाइयों की योजना-
जेल में पहले से ही कई जरूरी सामान जेल के कारखानों में तैयार किए जा रहे हैं, जिनमें फाइल, साबुन, मिठाइयां, मसाला, तेल, ब्रेड, बिस्कु़ट, फर्नीचर, एलईडी लाइ़ट, कंबल, चादर समेत कई दूसरी चीजें भी शामिल हैं. जेल में तैयार बेकरी और कपड़े तिहाड़ के आउट लेट और बाजारों में उपलब्ध हैं. हिंदुस्तान की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब जेल प्रशासन दो नई निर्माण इकाइयां स्थापित करने की तैयारी में है. इन इकाइयों में रजिस्टर के साथ-साथ चप्पल, टूथपेस्ट और अंडरवियर तैयार करने प्रस्ताव हैं. यह प्रस्ताव जल्द ही वरिष्ठ अधिकारियों की मंजूरी के बाद सरकार को भेजा जाएगा.
इस कदम क्या है मकसद-
आपको बता दें कि इस कदम का मकसद केवल उत्पाद ही नहीं, बल्कि कैदियों को स्वावलंबी, आत्मनिर्भरता और पुनर्रचना का मौका देना है, ताकि वह जब जेल से बहार निकलें तो वह फिर से अपराध की ओर न जाकर, अपने सीखे हुए कौशल के साथ समाज में एक नई पहचान बना सकें और अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर के जीवन यापन कर सके.
कितनी मिलती है सैलरी-
तिहाड़ जेल में कैदियों को सिर्फ सुधार नहीं स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की राह भी मिल रही है. यहां काम करने वाले कैदियों को उनके हुनर और अनुभव के आधार पर वेतन दिया जाता है. एक सामान्य कैदी को 7000 प्रति माह वेतन मिलता है. जबकि छह माह के अनुभव के बाद कैदी का वेतन दस हजार तक पहुंच जाता है. यह पूरी पहल इस सोच को आगे बढ़ाती है कि सजा सुधार का जरिया होना चाहिए, सिर्फ दंड का नहीं. इस पहल से न केवल जेल में उत्पादकता बढ़ रही है, बल्कि जेल प्रशासन का खर्च भी घटा रहा है.
(ये स्टोरी पूजा कदम ने लिखी है. पूजा जीएनटी डिजिटल में बतौर इंटर्न काम करती हैं)
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