इन दिनों अनोखी सीढ़ियों का तिब्बत तक जाने वाला रास्ता पर्यटकों से गुलजार है. पुराने जमाने में भारत के उत्त्तरकाशी जिले से तिब्बत तक के व्यापार के लिए लोगों ने यह अनोखा रास्ता बनाया था. ये रास्ता इंडोचायना बार्डर के नेलांग घाटी से जुड़ा हुवा है. इसे जाड़ गंगा के ऊपर पत्थर की चट्टानों को काटकर बनाया गया है, जिसे स्थानीय भाषा में गर्तांगली कहते हैं.
समुद्र तल से 10 हजार 500 फीट की ऊंचाई पर एक खड़ी चट्टान को काटकर बनाए गए इस सीढ़ीनुमा मार्ग से गुजरना बहुत ही रोमांचकारी अनुभव है. इन दिनों गर्तांगली पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है, जहां काफी तादाद में पर्यटक इसका दीदार करने पहुंच रहे हैं.
डीएम आशीष चौहान ने कराया था इसका पुनर्निर्माण
ये अनोखी सीढ़ियां पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं. जीर्ण-शीर्ण हालत में पड़ी इन सीढ़ियों का पुनर्निर्माण जिलाधिकारी आशीष चौहान ने वन विभाग की मदद से किया था. आज इस रास्ते में वन विभाग की अनुमति के बाद ही जाया जा सकता है.
1962 से पहले व्यापारियों से गुलजार रहती थी ये सीढ़ियां
मुख्यालय से करीब 83 किमी दूर स्थित गर्तांगली जनपद का बेहतरीन पर्यटन स्थल के रूप में उभर रहा है. साल 1962 से पहले भारत-तिब्बत के बीच व्यापारिक गतिविधियां संचालित होने के कारण नेलांग घाटी दोनों तरफ के व्यापारियों से गुलजार रहती थी. दोरजी (तिब्बती व्यापारी) ऊन, चमड़े से बने कपड़े और नमक लेकर सुमला, मंडी और नेलांग से गर्तांगली होते हुए उत्तरकाशी पहुंचते थे.
गंगोत्री नेशनल पार्क की वेबसाइट से मिलेगा घूमने का परमिट
भारत-चीन युद्ध के बाद गर्तांगली से व्यापारिक आवाजाही बंद हो गई. देख-रेख के अभाव में इसकी सीढ़ियां और लकड़ी जर्जर होती चली गईं, जिसके बाद जिला प्रशासन ने इस गर्तांगली में एक बार फीर जान डालने का काम किया. काम पूरा होने के बाद अब इसे एक बार फिर पर्यटकों की आवाजाही के लिए खोल दिया गया है. इसके लिए परमिट गंगोत्री नेशनल पार्क की वेबसाइट से जारी होंगे. यहां जाने के लिए भारतीय पर्यटकों को 150 रुपये और दूसरे देश के पर्यटकों को 600 रुपये देने होंगे.
(उत्तरकाशी से ओंकार बहुगुणा की रिपोर्ट )
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