घर पर खुद रियाज कर सीखा संगीत, सूफी गायन को मानते हैं आत्मा की आवाज

अरविंद ने खेलने-कूदने की उम्र में ही अपने हाथ में हारमोनियम थाम लिया. 15 साल की उम्र में शुरू हुआ यह सफर निरंतर जारी है. उसने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा घर पर अभ्यास से ही हासिल की.

अरविंद चौहान (फोटो क्रेडिट- फेसबुक)
gnttv.com
  • उत्तरकाशी,
  • 07 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 3:57 PM IST
  • अरविंद ने खेलने-कूदने की उम्र में ही अपने हाथ में हारमोनियम थाम लिया था.
  • संगीत की प्रारंभिक शिक्षा घर पर अभ्यास से ही हासिल की.

अगर इरादे बुलंद हों और मेहनत आपकी रगों में दौड़ती हो तो मंजिल की राह आसान हो जाती है. संगीत एक साधना है, पूजा है, इबादत है और जो जितनी मेहनत के साथ साधना करता है, उसे इसका बेहतर फल जरूर मिलता है. ऐसे ही एक हैं उत्तरकाशी के चिन्याली सोड़ के गरीब परिवार के लाल अरविंद सिंह चौहान की, जिसने सूफी गायिकी ओर शास्त्रीय संगीत में अपनी अलग पहचान बनाई है. अब तक वो कई राष्ट्रीय स्तर के मंच राजस्थान, शिमला, देहरादून से लेकर यू ट्यूब पर भी अपना प्रोग्राम पेश कर चुके हैं.  

सीखने की भूख, अच्छा करने का जुनून और अपने टैलेंट पर भरोसा करने वाले अरविंद को भरोसा है कि एक दिन वह भी गायिकी में अपना अलग मुकाम बनाएगा. सूफी के अलावा वो गढ़वाली लोक गीत, भजन और गजल भी आसानी से गा सकते हैं. प्रसिद्ध गायक कैलास खेर के गानों को सुनकर हूबहू उनकी ही तरह से गाने में माहिर अरविंद का कहना है कि उनके पास संसाधन नहीं है लेकिन फिर भी आगे बढ़ने की तम्मना है और इसके लिए दिन-रात मेहनत करता रहूंगा. 

 15 साल की उम्र से शुरू हुआ संगीत का सफर 

अरविंद ने खेलने-कूदने की उम्र में ही अपने हाथ में हारमोनियम थाम लिया. 15 साल की उम्र में शुरू हुआ यह सफर निरंतर जारी है.  उसने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा घर पर अभ्यास से ही हासिल की. हालांकि आगरा घराने के उस्ताद दिलीप जी के साथ दो महीने संगीत का ककहरा भी सीखा. अरविंद चौहान की पारिवारिक पृष्ठभूमि संगीत की नहीं रही मगर संगीत को ही जीवन मान चुके अरविंद इस दिशा में लगातार आगे बढ़ते जा रहे हैं.  

सूफी संगीत से है खास लगाव

सूफी गायिकी के लिए खास लगाव की वजह पूछने पर अरविंद बताते हैं कि इस गायिकी शैली  की प्रेरणा प्रकृति के सुंदर रूप से मिली. प्रकृति को समझने के साथ ही इसके साथ गहरा जुड़ाव हो गया. अरविंद का कहना है, "सूफी आत्मा की आवाज है, इसके अल्फाज सुकून देते हैं. लगता है मानो आत्मा और परमात्मा के बीच सीधा संबंध कायम हो गया है. इससे मेरा रूहानी रिश्ता है. वैसे तो सूफी गायिकी मेरी प्राथमिकता है, मगर हर तरह का गाना गाना चाहता हूं और भविष्य में खुद को प्ले बैक सिंगर के रूप में स्थापित करना चाहता हूं. वैसे स्टेज शो मेरा पहला प्यार रहेगा,क्योंकि लाइव परफारमेंस में आपको श्रोता-दर्शकों की प्रतिक्रिया तुरंत मिल जाती है, इससे खुद की परख  करने में आसानी होती है."

(रिपोर्ट-ओंकार बहुगुणा)

 

 

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