कागज जो हर किसी के जीवन का हिस्सा है. जिसने पढ़ाई लिखाई नहीं भी की उसने कभी ना कभी कागज पर अंगूठा तो जरूर लगाया होगा. मतलब कागज हम सब की जिंदगी के किसी ना किसी हिस्से को छूकर गुजरा है लेकिन क्या आपने कभी कागज की कहानी सुनी है. क्या आपको पता है कि देश में कागज बनना शुरू कैसे हुआ और एक वक्त यह भी आया जब ऐसा लगा कि देश में कागज बन ही नहीं पाएगा. आज आपको पूरी कागज कथा सुनाते और जयपुर के सांगानेर गांव में लेकर चलते हैं जहां पर आज भी कागज हाथ से बनता है.
उच्च जाति के लोगों ने कागज के इस्तेमाल से किया इनकार
इस्लामुद्दीन कागजी बताते हैं कि कागज बनाने के लिए हमारे खानदान के लोगों को सबसे पहले बाबर यहां पर लेकर आया था. हमें जयपुर में बसाया गया था. लेकिन जयपुर में पानी की कमी थी इसलिए महाराजा सवाई मान सिंह ने हमे यहां सांगनेर शिफ्ट करवा दिया. इस्लामुद्दीन बताते हैं कि एक वक्त ऐसा भी आया था जब उच्च जाति के लोगों ने कागज को इस्तेमाल करने के लिए मना कर दिया था. इसकी एक वजह यह भी थी क्योंकि वह कोई भी वेद या मंत्र कहीं पर लिख कर रखना नहीं चाहते थे ताकि वो छोटी जाति के हाथ न लग जाए.
क्यों आया कागज पर संकट
वह बताते हैं कि धीरे-धीरे कागज का प्रयोग कम होता गया जिससे कागज बनाने वालों पर ही संकट आ गया. एक वक्त ऐसा आया जब उनके दादा अला बक्श और बाकी लोगों ने कुली का काम करना शुरू कर दिया. उस वक्त किसी ने उन्हें सलाह दी कि वह गांधी जी के पास जाएं. गांधी जी से मिलने के बाद कागज का कारोबार दुबारा शुरु हुआ. इस्लामुद्दीन बताते हैं कि कागज का कारोबार गांधीजी के दखल के बाद चल पड़ा था लेकिन फिर उनके पिता सलीम उद्दीन इस बात को अच्छी तरह समझते थे कि अगर इस हुनर को दूसरे लोगों को नहीं सिखाया तो इस काम पर एक दिन फिर से संकट आ जाएगा इसलिए उन्होंने और भी लोगों को कागज बनाने की ट्रेनिंग देने शुरू करें यही वजह है कि धीरे-धीरे कागज ने उद्योग का रूप ले लिया.
कागज पर लिखी है 400 साल पुरानी पांडुलिपी
कलीम कागजी के परिवार के पुराने कागज उद्योग को अब कलीम संभालते हैं. वह बताते हैं कि हाथ से बना हुआ कागज ज्यादा लंबे समय तक चलता है. वो बताते हैं कि 400 साल पुरानी एक पांडुलिपी है जो हमारे कागज पर लिखी है, जो कि आज भी वैसी की वैसी है क्योंकि में कोई बदलाव नहीं आया, रंग में भी नहीं. कलीम बताते हैं कि वो आज दुनियाभर में 141 देशों में कागज और उससे बना सामान एक्सपोर्ट करते हैं. जयपुर के सांगानेर में यह कागजी परिवार आज भी पारंपरिक तरीके से कागज को तैयार करता है कई बार इन्हें सरकार की तरफ से सम्मानित भी किया गया है लेकिन इन सबके बीच एक सबसे खास बात इस परिवार की यह भी है कि इन्होंने कागज और उसके इतिहास को हमेशा संजोए रखा. यही वजह है कि इस मशीनी युग में आज भी ये लोग कागज हाथ से बनाते हैं.