Delimitation: क्या होता है परिसीमन? महिला आरक्षण के लिए क्यों है जरूरी

महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पास हो गया है लेकिन महिलाओं के आरक्षण की राह में अभी और भी कांटे हैं. इसकी एक वजह ये है कि जनगणना जो 2021 में होने वाली थी हुई नहीं हैं और इसके लिए परिमीशन की आवश्यकता पड़ेगी.

Women's Reservation Bill
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 22 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 2:11 PM IST

महिला आरक्षण के लिए लाया गया 'नारी शक्ति वंदन विधेयक' लोकसभा से पास हो गया है. इसके जरिए महिलाओं को लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में एक तिहाई आरक्षण दिया जाएगा. लेकिन जितनी आसान इस बिल की कहानी दिखाई देती है उतनी है नहीं. इस विधेयक के रास्ते में अब भी कई रोड़े हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि चुनावों में महिलाओं को आरक्षण का फायदा जनगणना और फिर परिसीमन के बाद ही मिलने वाला है. ऐसी उम्मीद है कि ये साल 2027 तक ही हो पाएगा और फिर 2029 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं को आरक्षण मिल सकता है. क्या है परिसीमन और आरक्षण के लिए परिसीमन क्यों है जरूरी, आइए जानते हैं.

क्या है प्रक्रिया?
विधेयक में दो शर्ते रखी गईं हैं. पहली ये कि नए प्रावधान परिसीमन के बाद ही लागू होंगे. दूसरी शर्त है कि परिसीमन कानून बनने के बाद पहली जनगणना के आंकड़ों के आधार पर होगा. इसका मतलब ये हुआ कि नया कानून बनने के बाद पहले जनगणना होगी फिर जनगणना के आंकड़ों के आधार पर सीटों का परिसीमन होगा. इसके बाद होने वाले चुनावों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा.देश में साल 2021 में जनगणना होनी थी जोकि कोविड वाला साल था और ये नहीं हो पाई. आगे भी यह कब होगी इस बात की कोई जानकारी नहीं है. रिपोर्ट्स की मानें तो साल 2027 या 2028 में ये हो सकती है. मतलब इसके अनुसार इसी के बाद परिसीमन होगा तब जाकर महिलाओं को आरक्षण मिलेगा. 

क्या होता है परिसीमन?
बढ़ती जनसंख्या के आधार पर वक्त-वक्त पर निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएं दोबारा निर्धारित करने की प्रक्रिया को परिसीमन कहते हैं. समय के साथ किसी भी क्षेत्र की जनसंख्या में बदलाव होना स्वाभाविक है. इसलिए परिसीमन के जरिए बदली हुई आबादी को समान रूप से प्रतिनिधित्व दिया जाता है. परिसीमन से सीटों की संख्या कम या ज्यादा हो सकती है. परिसीमन का उद्देश्य भौगोलिक क्षेत्रों को सीटों में निष्पक्ष रूप से बांटना भी है, ताकि किसी भी राजनीतिक पार्टी को अनुचित लाभ न हो.

क्यों पड़ी इसकी जरूरत
विधेयक के कानून बनने के बाद विधानसभा और लोकसभा की सीटें आरक्षित होंगी. अगर परिसीमन नहीं किया जाए तो कौन सी सीट आरक्षित होगी और कौन सी नहीं इसका निर्धारण करने का कोई पैमाना नहीं होगा. अगर बिना परिसीमन के किसी सीट को आरक्षित कर दिया जाए तो विवाद खड़ा हो सकता है. दरअसल प्रक्रिया को लोकतांत्रिक बनाने के लिए परिसीमन जरूरी होता है. हर राज्य में समय के साथ जनसंख्या में बदलाव होते हैं ऐसे में समय के साथ जनसंख्या बदलाव होते हैं, ताकि बढ़ती जनसंख्या का भी समान प्रतिनिधित्व हो सके. इसी के लिए निर्वाचन क्षेत्र का पुनर्निधारण होता है. इसका उद्देश्य भी यही है कि हर वर्ग के नागरिक को प्रतिनिधित्व का समान अवसर मिले. जब भी परिसीमन किया जाता है, तब अनुसूचित वर्ग के हितों को ध्यान में रखने के लिए आरक्षित सीटों का भी निर्धारण करना होता है. 

अभी तक कितनी बार हुआ परिसीमन
आजादी के बाद से अब तक 4 बार परिसीमन हुआ है जोकि साल 1952, साल 1963, साल 1973 और 2002 में हुआ था. आखिरी बार जब 2002 में परिसीमन हुआ, तब निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ था यानी 70 के दशक से लोकसभा सदस्यों की संख्या 543 ही है. संविधान का अनुच्छेद 81 कहता है कि देश में लोकसभा सांसदों की संख्या 550 से ज्यादा नहीं होगी. हालांकि, संविधान ये भी कहता है कि हर 10 लाख आबादी पर एक सांसद होना जरूरी है. किसी राज्य में लोकसभा और विधानसभा सीटों की संख्या कितनी होगी? इसका काम परिसीमन आयोग करता है.  परिसीमन आयोग का गठन साल 1952 में किया गया था. 

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