दो महीने कार में बिताए, अब उसी कार से जिंदगी के नए सफर पर करन और अमृता

करन और अमृता बताते हैं कि हालात बहुत खराब हो गए थे. हमारे पास पैसे भी नहीं थे तभी अमृता के पिता ने हमें घर बुलाया और हमसे कहा कि ये गाड़ी ले जाओ इसी से कुछ काम कर सकते हो तो कर लो. करन और अमृता गाड़ी ले आए लेकिन उन हालातों में गाड़ी ही उनके लिए सब कुछ बन गई.

अमृता जी के राजमा चावल
मनीष चौरसिया
  • नई दिल्ली,
  • 15 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 10:40 PM IST
  • 'अमृता जी के राजमा चावल' अब दिल्ली में अच्छी पहचान पा चुके हैं.
  • दो महीने गाड़ी में सोए, पब्लिक टॉयलेट यूज किया लंगर में खाना खाया

करन और अमृता की छोटी सी कार...और इसी कार पर सवार है इन दोनों की जिंदगी.. अमृता और करन की जिंदगी आराम से खुशी-खुशी कट रही थी लेकिन तभी लॉकडाउन में करण ने अपनी नौकरी खो दी. करन एक सांसद के ड्राइवर थे लेकिन लॉकडाउन में उनकी नौकरी चली गई जिसके बाद उन्हें नौकरी की वजह से मिला हुआ घर (सर्वेंट क्वार्टर) भी छोड़ना पड़ा. करन और अमृता ने बहुत संघर्ष किया. अब वो दोनों अपनी कार में खाना रख कर बेचते हैं.. 'अमृता जी के राजमा चावल' अब दिल्ली में अच्छी पहचान पा चुके हैं. अब उनकी जिंदगी भी पटरी पर लौटती दिखाई पड़ रही है.

पुलिस बुला ली और एक हफ्ते में घर खाली करने को बोला
करन बताते हैं कि उस वक्त लॉकडाउन में सभी चीजें बंद थी लेकिन तभी मेरी नौकरी और घर एक साथ चला गया. जहां ड्राइवर था उन्होंने कहा काम नहीं है चले जाओ उन्हीं के यहां सर्वेंट क्वार्टर में रहते थे इसलिए घर भी खाली करना पड़ा. हमने उनसे बहुत मिन्नतें की कि ऐसे हालात में हम कहां जाएंगे लेकिन एक दिन उन्होंने पुलिस बुला ली जिसके बाद हमें घर छोड़ना ही पड़ा.

दो महीने गाड़ी में सोए, लंगर में खाना खाया
करन और अमृता बताते हैं कि हालात बहुत खराब हो गए थे. हमारे पास पैसे भी नहीं थे तभी अमृता के पिता ने हमें घर बुलाया और हमसे कहा कि ये गाड़ी ले जाओ इसी से कुछ काम कर सकते हो तो कर लो. करन और अमृता गाड़ी ले आए लेकिन उन हालातों में गाड़ी ही उनके लिए सब कुछ बन गई. किसी मकान की तरह ये दोनों इसी गाड़ी में 2 महीने तक रहे. इसी गाड़ी में सोए, पब्लिक टॉयलेट इस्तेमाल किया और गुरुद्वारे में लंगर खाया. अमृता बताती है कि कई बार पूरा पूरा हफ्ता बीत जाता था और वो नहा नहीं पाती थी.

मुसीबत है तो दोनों साथ झेलेंगे
अमृता बताती है हालात लगातार बिगड़ रहे थे इसलिए एक दिन करन ने मुझसे कहा कि तुम घर चली जाओ लेकिन मैंने मना कर दिया और कहा कि मुसीबत भी हम साथ में रहेंगे जो होगा देखा जाएगा. करन बताते हैं कि फिर एक दिन अमृता को ही आइडिया आया कि क्यों ना खाने का काम किया जाए. दोनों ने दिल्ली में पहले भी ऐसे गाड़ियों में खाना बेचते हुए लोगों को देखा था. करन शुरुआत में काम करने के लिए हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे लेकिन अमृता ने उन्हें ताकत दी और दोनों आगे बढ़े. करन बताते हैं कि खाना बनाने के लिए हमें एक जगह चाहिए थी बड़ी मुश्किल से हमें एक गैराज वाले का साथ मिला लेकिन इस शर्त के साथ कि हम वहां पर सिर्फ खाना बना सकते हैं रह नहीं सकते.


हॉफ के दाम में दिया फुल प्लेट खाना, पहले कस्टमर की दुआ आई काम
 करन और अमृता बताते हैं कि जब हम पहले दिन खाना लेकर पहुंचे तो हम बड़ा कंफ्यूजन में थे कि हमारा खाना कौन खाएगा, लोगों को पसंद आएगा या नहीं?  बहुत देर हो जाने के बाद भी कस्टमर नहीं आए लेकिन फिर एक कस्टमर आया उसने हाफ लेट राजमा चावल का आर्डर दिया लेकिन हमने उन्हें हाफ प्लेट के दाम में ही फुल प्लेट दे दिया उन्होंने सवाल किया कि ऐसा क्यों तो हमने कहा कि खाना बहुत बच रहा है खराब हो जाए क्या फायदा इससे अच्छा है आप पेट भर खा लो. हाफ प्लेट के ही पैसे दे देना. अमृता और करण बताते हैं कि उस कस्टमर ने उनके खाने की बहुत तारीफ की और उन्हें बहुत सारी दुआ भी दी. ये उसकी दुआ का ही कमाल था कि उसके बाद लगातार लोगों का आना शुरू हो गया.

दुकान तो चल पड़ी लेकिन फिर जगह बदलनी पड़ी
इन दोनो ने सबसे पहले दिल्ली के तालकटोरा लेन पर काम करना शुरु किया था. करण और अमृता बताते हैं कि कई लोगों ने हमारी मदद की लेकिन कई बार पुलिस और एमसीडी के लोग परेशान करते थे. दो बार हमारा चालान काटा गया क्योंकि हम प्राइवेट गाड़ी में कमर्शियल एक्टिविटी कर रहे हैं.  कई बार हमें गाड़ी को सीज कर देने की धमकी भी मिली और यही वजह रही कि तालकटोरा लेन हमे छोड़नी पड़ी. अब हम दोनो मोहन स्टेट मेट्रो के नीचे काम कर रहे हैं.

हार नहीं माननी चाहिए, एक दिन मेरा भी रेस्टोरेंट खुलेगा
अमृता कहती है कि काफी हद तक चीजें ठीक हुई है लेकिन बार-बार जगह बदलने से दिक्कत होती है.. हालांकि अमृता कहती हैं कि वह इसी काम को आगे बढ़ाना चाहती हैं और उन्हें विश्वास है कि एक न एक दिन वो भी अपना एक अच्छा सा रेस्टोरेंट खोलेंगी.

 

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