बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) ने रिटायर हो रहे ऊंटों के लिए एक नई योजना शुरू की है. इस योजना के तहत, सेवा पूरी कर चुके ऊंटों को सीमाई इलाकों के ग्रामीणों को दिया जा रहा है. इससे न सिर्फ ऊंटों को सम्मानजनक जीवन मिलेगा, बल्कि ग्रामीणों को रोज़गार और पर्यटन से जुड़ने का अवसर भी मिलेगा.
ऊंटों का महत्व
रेगिस्तानी इलाकों में ऊंटों को “रेगिस्तान का जहाज” कहा जाता है. राजस्थान के सीमा क्षेत्रों में इनका इस्तेमाल बहुत समय से किया जाता रहा है. बीएसएफ भी ऊंटों का उपयोग सीमाओं की निगरानी के लिए करती है.
रिटायरमेंट के बाद पुनर्वास
बीएसएफ में ऊंटों को आमतौर पर 10 साल की सेवा या 16 साल की उम्र पूरी होने पर रिटायर कर दिया जाता है. अब रिटायरमेंट के बाद उन्हें ग्रामीणों को सौंपा जा रहा है. इस तरह ऊंटों को भी देखभाल मिलती है और ग्रामीणों को इनसे कमाई का साधन मिलता है, जैसे पर्यटकों को सवारी कराना.
गृह मंत्रालय की पहल और नियम
गृह मंत्रालय ने ऊंटों को अपनाने (adoption) की प्रक्रिया शुरू की है. ग्रामीणों को ऊंट देने से पहले पूरी कानूनी प्रक्रिया की जाती है. यह सुनिश्चित किया जाता है कि ऊंटों का गलत इस्तेमाल न हो. ग्रामीणों से एक बॉन्ड भरवाया जाता है और समय-समय पर डॉक्टर ऊंटों की जांच करते हैं.
भविष्य की योजना
फिलहाल बीएसएफ के पास 100 से ज़्यादा रिटायर ऊंट हैं. उनकी सही देखभाल हो रही है और यह देखा जा रहा है कि ग्रामीण उन्हें ठीक से संभालें. जैसलमेर से आई रिपोर्ट के अनुसार, यह पहल ऊंटों के लिए सम्मानजनक जीवन तो देती ही है, साथ ही ग्रामीणों के लिए रोजगार और पर्यटन के नए मौके भी खोलती है.
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