दिल्ली में रोहिणी के रहने वाले शंकर सिंह और गरिमा सिंह (दोनों 28 वर्ष) की ज़िंदगी देखने में बिल्कुल परफेक्ट लगती है. शंकर सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और गरिमा एक प्रतिष्ठित स्कूल में शिक्षिका हैं. लेकिन इस शहरी चमक-धमक से परे, दोनों का एक अनोखा जुनून है दिल्ली को साफ़-सुथरा बनाना.
राज्य सरकार के ‘दिल्ली को कूड़े से आज़ादी’ अभियान के साथ तालमेल रखते हुए इस दंपति ने अगस्त में खुद का 50-दिन का चैलेंज शुरू किया. सितंबर के मध्य तक वे दिल्ली के 50 प्रमुख पर्यटन स्थलों की सफाई करेंगे. इनमें इंडिया गेट, लाल किला और चांदनी चौक जैसी जगहें शामिल हैं.
कचरे के ढेर के बीच सफाई अभियान
हाल ही में मजनू का टीला में उन्होंने दस्ताने और मास्क पहनकर प्लास्टिक कप, रैपर और अन्य कचरा उठाया. मजनू का टीला गंदगी के लिए बदनाम है. उन्हें सफाई करते हुए लोग पहले हैरान हुए, फिर कई ने प्रेरित होकर मदद भी की. गरिमा ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा कि जब भी वे कोई जगह चुनते हैं तो देखते हैं कि काम पूरा करना संभव हो.
हनीमून से मिली प्रेरणा
इस मुहिम की प्रेरणा उन्हें 2019 में मॉरीशस की यात्रा से मिली. शंकर ने टीओआई से कहा, “वहां हमने देखा कि लोग अपने आसपास को खुद साफ़ रखते हैं. तभी हमें एहसास हुआ कि बदलाव हमें नागरिकों को ही लाना होगा. गंदगी फैलाने में हम सबकी बराबर जिम्मेदारी है.”
सफाई सिर्फ गरीबों का काम नहीं
इस कपल का मानना है कि कचरा फैलाना शिक्षा की कमी से जुड़ा नहीं है. शंकर कहते हैं कि उन्होंने खान मार्केट और अम्मा कैफ़े जैसे महंगे इलाकों में भी स्टारबक्स के कप बिखरे देखे. साफ है कि गंदगी करने वालों का पढ़ाई-लिखाई से कोई लेना-देना नहीं. गरिमा बताती हैं कि भारतीय परंपराएं हमेशा से सस्टेनेबल रही हैं. गांवों में आज भी लोग गोबर खाद और मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल करते हैं. यह दिखाता है कि स्थायी जीवनशैली सबके लिए सुलभ है, यह बहाना बनाना बंद करना होगा कि यह सिर्फ अमीरों के लिए है.
छोटे कदम, बड़ा बदलाव
शंकर और गरिमा न सिर्फ बाज़ारों, अस्पतालों और कॉलोनियों बल्कि यमुना किनारे और रोहिणी के M2K कॉम्प्लेक्स जैसे गंदगी से जूझ रहे इलाकों की सफाई भी कर रहे हैं. वे कचरे को गीले और सूखे हिस्सों में अलग कर दिल्ली MSW सॉल्यूशन्स लिमिटेड को निपटान के लिए भेजते हैं. गरिमा कहती हैं कि सबसे बड़ी गलतफहमी है कि सफाई सिर्फ कुछ लोगों का काम है. अगर आपके पास फोन चलाने का समय है तो एक कप को डस्टबिन में डालने का भी समय है.
लोगों की भागीदारी और सरकार की सराहना
अक्सर राहगीर पहले उन्हें देखकर हैरान होते हैं, लेकिन बाद में मदद के लिए आगे आ जाते हैं. शंकर बताते हैं कि लोक नायक अस्पताल में एक बुजुर्ग व्यक्ति ने साफ-सफाई में मदद करने की जिद की. उनके प्रयास लोगों को याद दिलाता है कि यह शहर उनका भी है. उनकी इस पहल की सराहना मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने भी की और सोशल मीडिया पर उनकी पोस्ट को साझा किया.
सिर्फ सफाई नहीं, स्थायी बदलाव का संकल्प
यह 50-दिन की मुहिम उनकी लंबी यात्रा का एक हिस्सा है. शंकर ने 2019 में वृक्षित फाउंडेशन की स्थापना की थी, जो पर्यावरण संरक्षण और जागरूकता के लिए काम करता है. दंपति का मानना है कि दो लोग भी बदलाव की शुरुआत कर सकते हैं.
--------End-----------