भोपाल से निकल रही यह कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है. सोचिए- कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करने वाला एक युवा अपने करियर का रुख बदलकर पोल्ट्री फार्मिंग में उतरता है. लेकिन यह साधारण अंडे का बिजनेस नहीं है, बल्कि सेहतमंद और हाइपोएलर्जेनिक अंडों की एक क्रांति है. जी हां, हम बात कर रहे हैं भोपाल के आदित्य गुप्ता और उनकी पत्नी दिशा गुप्ता की, जिन्होंने कठिनाइयों और बीमारियों के बीच ऐसा नवाचार किया जो लाखों लोगों के स्वास्थ्य को नई दिशा दे सकता है.
बीमारी बनी प्रेरणा
आदित्य गुप्ता ने जब कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई पूरी की थी, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि उनका भविष्य कृषि और पोल्ट्री फार्मिंग से जुड़ जाएगा. परिवार का पुराना कृषि व्यवसाय तो था, लेकिन आदित्य ने तय किया कि वे मांस बेचने की बजाय पोषण पर ध्यान देंगे. उन्होंने खुद को तैयार करने के लिए छह महीने तक आर.एस. एग्रो जैसे बड़े पोल्ट्री फार्म में इंटर्नशिप की. सुबह 4 बजे से रात 9 बजे तक काम करना उनकी दिनचर्या थी.
लेकिन साल 2018 में सब बदल गया. आदित्य को कैंसर का पता चला. अचानक जिंदगी की नश्वरता सामने थी. यही वो क्षण था जब उन्होंने ठान लिया- अब उनका जीवन और व्यवसाय दोनों सिर्फ़ “बेहतर पोषण” के लिए समर्पित होंगे.
जड़ी-बूटियों से तैयार खास फीड
बीमारी के दौर में आयुर्वेद ने आदित्य को संभाला. यहीं से उन्हें आइडिया आया कि क्यों न पोल्ट्री फीड में जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाए. सालों की मेहनत और रिसर्च के बाद उन्होंने एक स्पेशल फ़ीड फॉर्मूला तैयार किया, जिसमें 200 से ज्यादा जड़ी-बूटियां शामिल हैं.
इस फीड से तैयार अंडे न सिर्फ़ स्वाद और पौष्टिकता में अलग हैं, बल्कि कोलेस्ट्रॉल और फैट कम और ओमेगा-5 व ओमेगा-7 फैटी एसिड अधिक रखते हैं. यही नहीं, ये अंडे हाइपोएलर्जेनिक यानी ऐसे हैं जो सामान्य अंडों से एलर्जी होने वाले लोगों के लिए भी सुरक्षित हैं. रिसर्च और मानव परीक्षणों में यह प्रयोग सफल रहा है.
आदित्य गर्व से कहते हैं, “हमारे अंडे प्रोटीन, मिनरल, विटामिन और फ्लेवोनॉइड्स से भरपूर हैं. यह किसी भी सामान्य अंडे से कहीं ज़्यादा इम्यूनिटी बूस्टर हैं. इसे आप ‘हेल्थ पैकेज’ कह सकते हैं.”
पत्नी दिशा बनीं हमसफ़र और सह-योद्धा
जहां आदित्य रिसर्च और उत्पादन पर ध्यान दे रहे थे, वहीं उनकी पत्नी दिशा गुप्ता ने पूरी मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन की जिम्मेदारी संभाली. बीमारी और अस्पतालों के दौर में जब आदित्य थक जाते थे, दिशा ने यह सुनिश्चित किया कि उनका सपना रुके नहीं.
COVID-19 लॉकडाउन के समय जब मजदूर और कर्मचारी नहीं मिल रहे थे, तब यह दंपति खुद अस्पतालों में जाकर अंडों की सप्लाई कर रहा था. सोचिए, जब पूरा शहर बंद था, तब ये दोनों हाथों में अंडों के पैकेट लिए फ्रंटलाइन वॉरियर्स को न्यूट्रिशन पहुंचा रहे थे.
आगे की राह है "अंडा क्रांति"
आदित्य और दिशा अब अपने इस हेल्दी अंडा मॉडल को और बड़े स्तर पर ले जाने की तैयारी कर रहे हैं. उनका कहना है कि हर जड़ी-बूटी की अपनी औषधीय शक्ति है. उनके प्रयोग न सिर्फ़ एलर्जी से जूझ रहे लोगों के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि मोटापे जैसी बीमारियों से लड़ने में भी सहायक हो सकते हैं.
आदित्य कहते हैं, “हम ओमेगा-7 आधारित इलाज पर भी काम कर रहे हैं. यह सिर्फ़ पोल्ट्री फार्मिंग नहीं है, बल्कि आयुर्वेद और विज्ञान के मेल से शुरू हुई अंडा क्रांति है.”
क्यों खास है यह कहानी?
यह कहानी सिर्फ पोल्ट्री फार्मिंग की नहीं है, बल्कि यह साहस, हिम्मत और नवाचार की मिसाल है. जब कैंसर जैसी बीमारी सामने आई, तब हार मानने के बजाय आदित्य और दिशा ने इसे अवसर में बदला.
जहां बाकी लोग अंडों को सिर्फ़ प्रोटीन का स्रोत मानते हैं, वहीं इस दंपति ने उन्हें “मेडिसिनल फूड” में बदल दिया. यह न सिर्फ़ सेहत के लिए नई राह है, बल्कि भारत की कृषि और पोषण जगत में भी क्रांति की शुरुआत है.
समाज के लिए प्रेरणा
आदित्य और दिशा की कहानी हमें सिखाती है कि अगर जुनून हो, तो कठिनाइयां भी आपका रास्ता नहीं रोक सकतीं. बीमारी आपको तोड़ सकती है, लेकिन अगर मन में नवाचार और सकारात्मक सोच हो, तो वही बीमारी आपको नई जिंदगी और दिशा दे सकती है.
आज उनके अंडे सिर्फ बाजार की एक प्रोडक्ट नहीं हैं, बल्कि हजारों लोगों के लिए उम्मीद और सेहत की किरण हैं.
(रविश की रिपोर्ट)