Saving Grains: बियर वेस्ट से रोटी, बिस्किट और ब्रेड बना रहे बेंगलुरु के ये Entrepreneurs...एक साल में 12,000 किलोग्राम बियर वेस्ट से बना दिया आटा

बीयर बनाने के बाद उसका वेस्ट किसी भी काम में नहीं आता है. जबकि उसमें वेस्ट होने के बावजूद उचित मात्रा में प्रोटीन, फाइबर और अन्य चीजें होती हैं. इसी ख्याल से बेंगलुरु की एक एंटरप्रेन्योर ने इसका इस्तेमाल करने की सोची और सेविंग ग्रेन नाम की एक संस्था की शुरुआत की.

Saving Grains
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 13 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 2:31 PM IST

भारत एक ऐसा देश है जहां कई लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती तो वहीं कई जगह भोजन की बर्बादी होती है. ये सिर्फ और सिर्फ अनदेखी की समस्या की वजह से होता है जिसकी वजह से यहां हर साल उत्पादित भोजन का एक तिहाई हिस्सा बर्बाद हो जाता है. लेकिन बेंगलुरु की रहने वाली एलीजाबेथ यॉर्क ने वो काम कर दिखाया जिसके बारे में शायद ही पहले किसी के मन में विचार आया हो. एलिजाबेथ सेविंग ग्रेन्स नाम से एक पेज चलाती हैं जो शहर में बीयर की भट्टी में इस्तेमाल होने वाले बचे हुए अनाज को बेकरी के सामान में बदलने का काम करता है.

कहां से आया आइडिया और क्या है मकसद
एलिजाबेथ यॉर्क एक ट्रेंड शेफ हैं और उन्होंने मनिपाल से अपनी डिग्री ली है. उन्होंने मैसूर के सेंट्रल फ़ूड टेक्नोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट और कैलीफोर्निया में ब्रेड स्पेशलिस्ट और फ़ूड हिस्टोरियन विलियम रूबेल के साथ काम किया है. साल 2016 में रूबेल के साथ काम करने के दौरान उन्हें शराब बनाने वाले और बेकर के बीच सदियों पुराने रिश्ते का पता चला. दरअसल शराब बनाने वाले और बेकर का काफी पुराना रिश्ता है. दोनों काफी समय से साथ काम करते आ रहे हैं. कभी-कभी आर्थिक कारणों की वजह से जगह और समान सामग्री (अनाज, पानी और खमीर) एक दूसरे के साथ शेयर करते थे. बेकर शराब बनाने वालों को बची हुई रोटी देते थे और शराब बनाने वाले बेकर को रोटी बनाने के लिए खर्च किया हुआ अनाज और खमीर देते थे. जब एलिजाबेथ को इसका पता चला तभी उनके दिमाग में ख्याल आया. उनका मकसद ‘सेविंग ग्रेन्स’ के जरिए भोजन की बर्बादी से बचाव करना है. इस आटे से वह कुकीज, ब्राउनी, ब्रेड और यहां तक कि रोटियों समेत कई चीजें बनाती हैं.

इससे एलिजाबेथ को और जिज्ञासा हुई और वो जानना चाहती थी कि भारत में आटा कैसे बनाया जाता है ताकि बर्बाद हो रहे भोजन की समस्या का निपटारा किया जा सके. इसके बारे में और अधिक जानने का फैसला किया और जब वह मैसूर में CFTRI(केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान) का दौरा कर रही थीं, तो उन्हें एक अप्रत्याशित खोज हुई. उन्हें एहसास हुआ कि भोजन के बारे में बहुत कुछ है जो हम नहीं जानते हैं. इसके बाद उन्होंने सांता क्रूज़, कैलिफ़ोर्निया की यात्रा की, जहां उन्होंने ब्रेड विशेषज्ञ और फूड हिस्टोरियन विलियम रूबेल के साथ इंटर्नशिप की. वहां, उन्होंने 13वीं से 16वीं शताब्दी तक पश्चिमी शैली में रोटी बनाने में दिन बिताए. उन्होंने मूल रूप से यहीं पर शराब बनाने की प्रक्रिया से बर्बाद हुए अनाज को बेकिंग आटा में पुन: उपयोग करने के विचार के बारे में सीखा.

कैसे हुई सेविंग ग्रेन की स्थापना
कई साल काम करने के बाद उनकी शिक्षा में इजाफा हुआ और वो चीजों को और बेहतर समझने लगीं. उन्होंने देखा कि अधिकतर संसधानों का इस्तेमाल हो रहा है, जबकि वेस्ट का बहुत कम. कोरोना महामारी के दौरान भारतीय फूड सिस्टम को लेकर उनके अंदर उठ रहे सवाल और समस्याओं के लिए उन्होंने साल 2021 के अंत में सेविंग ग्रेन्स (Saving Grains)की स्थापना की जो वेस्ट को अनाज में बदलने का एक मिशन है.

अगर आपको वेस्ट खाने का विचार अजीब लगता है तो इस सोच को दूर कर दें क्योंकि शराब बनाने वाली कंपनियां शराब बनाने की प्रक्रिया में मुख्य रूप से जौ के आलावा गेंहू, ओट्स और राई जैसे अन्य अनाज का भी इस्तेमाल करती हैं. संक्षेप में ऐसे समझें कि अनाज को अंकुरित किया जाता है. शक्कर डालकर पकाया जाता है. फिर मसला जाता है और उसमें का तरल पदार्थ बीयर बनाने में प्रयोग होता है और बचा हुआ अनाज वेस्ट होता है, जिसे खर्च अनाज कहते हैं.

वेस्ट का कहां होता है इस्तेमाल?
इस बचे हुए अनाज में वेस्ट होने के बावजूद काफी अच्छी मात्रा में प्रोटीन, फाइबर और अन्य पोषक तत्व होते हैं, जो खाने के लिए उपयुक्त होते हैं. यही वजह है कि इसका कुछ हिस्सा पशुओं के चारों के तौर पर इस्तेमाल होता है, जबकि अधिकतर बचे अनाज को फेंक दिया जाता है. अगर आकड़ों पर नजर डालें तो यह हैरान करने वाले हैं. अकेले बेंगलरु में तक़रीबन 70 माइक्रोब्रुअरीज हैं. अनुमान है कि वे मिलकर प्रतिदिन लगभग 12,000 किलोग्राम खर्च किया हुआ अनाज बचाते हैं. इसे पूरे साल से गुणा करें तो जो संख्याएं आएंगी वह वास्तव में चौंका देने वाली हैं. वहीं पूरे देश में 250-300 माइक्रोब्रुअरीज होने का अनुमान है. शराब की भट्टी से मैश्ड अनाज को एकत्र किया जाता है. सेविंग ग्रेन्स के एक सहयोगी केंद्र में इसे सुखाया जाता है और आटे में मिला दिया जाता है. एलिजाबेथ ने एक छोटी सी शुरुआत की मगर पिछले साल लगभग 12,000 किलोग्राम बचे अनाज को अच्छे आटे में बदल दिया जिसमें 45% आहार फाइबर और 22% प्रोटीन होता है, जबकि कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम रहती है. 

इस आटे का इस्तेमाल बिजनेस और घरेलू दोनों तरह से किया जाता है. वहीं सेविंग ग्रेन्स आटे के अलावा कुकीज, चाय बिस्किट, ब्रेड, रोटी, लड्डू और चिक्की भी बेचती है जिसका स्वाद बहुत ही लजीज होता है. लोग भी इसे काफी पसंद करते हैं. 

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