मिलिए Guthli Man of India से, बेकार फेंकी गई आम की गुठलियों से पौधे तैयार कर मुफ्त में बांट रहे हैं किसानों को

हर आम के मौसम में जसमीत और उनकी टीम घरों, स्कूलों, होटलों और बाजारों से हजारों आम की गुठलियां इकट्ठा करते हैं.

Jasmit Singh Arora (Photo: Instagram)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 05 मई 2025,
  • अपडेटेड 1:22 PM IST

कोलकाता के रहने वाले 51 वर्षीय सामाजिक उद्यमी जसमीत सिंह अरोड़ा देशभर में एक अनोखा अभियान चला रहे हैं. उनका मकसद फेंकी गई आम की गुठलियों को इकट्ठा करना और इन्हें पौधों में बदलना और फिर इन्हें किसानों को मुफ्त में देना है ताकि वे सस्टेनेबल आम की खेती कर सकें. 

उन्हें अब लोग ‘गुठली मैन ऑफ इंडिया’ कहने लगे हैं. उनका यह प्रयास किसानों को धान जैसी पानी ज़्यादा खर्च करने वाली और कम उपज वाली फसलों से हटाकर आम की खेती की ओर लाना चाहता है. इससे लॉन्ग-टर्म फायदे होंगे जैसे किसानों आमदनी बढ़ेगी, प्रकृति की सुरक्षा, और साथ ही, जैव विविधता को बढ़ावा मिलेगा. 

डॉक्टर से प्रकृति प्रेमी तक का सफर
जसमीत सिंह अरोड़ा पेशे से डॉक्टर थे. उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ समय तक मेडिकल, फिर आईटी और फार्मा सेक्टर में काम किया. लेकिन पिछले कुछ सालों में जब वे सुदूर ग्रामीण इलाकों जैसे सुंदरबन, पुरुलिया और बांकुरा गए, तो उन्हें किसानों की परेशानियों के बारे में पता चला. 

इन्हीं अनुभवों से प्रेरित होकर उन्होंने प्रकृति और किसानों के लिए कुछ करने का फैसला लिया. वह अब पूरी तरह जैविक खेती और वृक्षारोपण में लगे हुए हैं. उनका मानना है कि अगर हम रसायनों से खेती करेंगे, तो जो थोड़ी आमदनी आज होगी, वह कल हमारी सेहत पर खर्च हो जाएगी. वह साबित करना चाहते हैं कि जैविक खेती फायदेमंद हो सकती है.

कैसे काम करता है यह अभियान?
हर आम के मौसम में जसमीत और उनकी टीम घरों, स्कूलों, होटलों और बाजारों से हजारों आम की गुठलियां इकट्ठा करते हैं. उन्हें साफ करके दो-तीन दिन धूप में सुखाया जाता है और फिर कोलकाता के पास आमतला स्थित उनके 5 एकड़ के फार्म में ले जाया जाता है.

यहां गुठलियों को अंकुरित करके लंगड़ा, गुलाब खास और हिमसागर जैसी स्थानीय किस्मों से ग्राफ्ट किया जाता है, ताकि पौधे स्थानीय जलवायु में अच्छे से बढ़ें और पूरी तरह जैविक रहें. जब पौधे तैयार हो जाते हैं, तो जसमीत इन्हें किसानों को बिल्कुल मुफ्त में बांटते हैं, खासकर पश्चिम बंगाल के उन किसानों को, जो पहले धान जैसी फसलों पर निर्भर थे. 

उनका कहना है कि आम के पेड़ को फल देने में समय लगता है, लेकिन ये लंबे समय तक कार्बन लॉक करते हैं, जैव विविधता को बढ़ाते हैं, और स्थिर आमदनी का जरिया बनते हैं. शुरुआत में भरोसा दिलाने के लिए वे किसानों को जल्दी फल देने वाले फलों के पौधे भी साथ में देते हैं, ताकि उन्हें तुरंत कुछ लाभ मिल सके. 

स्कूल, सेना और समाज की भागीदारी
अब यह अभियान एक जन आंदोलन बन गया है. कोलकाता के 20 से ज्यादा स्कूलों, कॉलेजों, NGO और यहां तक कि सेना की यूनिट्स ने भी इसमें भाग लिया है. टोलोलिंग बटालियन और बराकपुर की दो सिख रेजीमेंट्स ने हाल ही में 7,500 गुठलियां दान की हैं. श्री शिक्षायतन, लोरेटो, डॉन बॉस्को पार्क सर्कस और लक्ष्मीकुमार सिंघानिया अकादमी जैसे स्कूलों में छात्र और अभिभावक गुठलियां जमा करने में जुटे हैं.

कार्बन प्रोटेक्शन फोर्स
जसमीत अब एक ‘कार्बन प्रोटेक्शन फोर्स’ बनाने की योजना पर भी काम कर रहे हैं, जिसमें कॉर्पोरेट, स्कूल और मीडिया शामिल हों. वे कहते हैं कि पृथ्वी को हमने बहुत नुकसान पहुंचाया है, अब वक्त है उसे ठीक करने का और इसकी शुरुआत हमें खुद से करनी होगी, न कि सरकार या बड़ी कंपनियों से. 

 

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