यह कहानी एक ऐसी महिला की है जिसने पूरे भारत में पहली बार “महिला सूमो पहलवान” बनने का खिताब हासिल किया. नाम है हेतल दवे. लेकिन आज जब वह अपने सफ़र को पीछे मुड़कर देखती हैं तो एक सच्चाई उन्हें सबसे ज़्यादा चुभती है - “मैंने अपने खेल को 32 साल दिए और आज भी नौकरी की तलाश में हूं.”
छोटी सी बच्ची से सूमो दीदी तक
हेतल का खेलों से रिश्ता बचपन से था. 6 साल की उम्र में उन्होंने जुडो की ट्रेनिंग शुरू की. उसी दौरान उन्हें सूमो रेसलिंग के बारे में पता चला. उन्होंने ब्रुट से बात करते हुए कहा कि हम तो सिर्फ कराटे के बारे में जानते थे. लेकिन जब उन्होंने जुडो शुरू किया तो वह कुछ अलग था. फिर जब सूमो के बारे में जाना, तो लगा जैसे किस्मत उन्हें वहीं ले जा रही है.”
उनके सबसे बड़े सहारा उनके पिता थे. न कोई कोच, न स्पॉन्सर, न प्रैक्टिस रिंग. वे इंटरनेट कैफ़े जाकर मैच देखते, नोट्स बनाते और घर आकर पिता को समझाती. फिर दोनों मिलकर मैदान में प्रैक्टिस करते.
संघर्ष और पहला वर्ल्ड चैंपियनशिप
ओवल मैदान, चर्चगेट की मुलायम ज़मीन पर ही उनकी ट्रेनिंग होती. पार्टनर मिलना भी मुश्किल था. स्पॉन्सर के लिए तो उन्हें “दर-दर की ठोकरें” खानी पड़ीं. एक लोकल अख़बार ने उनकी कहानी छापी और तभी एक स्पॉन्सर मिला. इसी से वे 2008 में एस्टोनिया पहुंचीं और पहली बार वर्ल्ड चैंपियनशिप खेलीं.
वहां सबने उनसे कहा कि वे गर्व महसूस करते हैं कि वह भारत से अकेली आई हैं. हेतल टॉप 8 में आईं और 2009 वर्ल्ड गेम्स (ताइवान) में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया.
समाज का ताना और मजबूरी की रिटायरमेंट
लेकिन भारत लौटकर माहौल अलग था. लोग कहते कि लड़की को मर्दों वाला खेल क्यों करा रहे हो? कौन शादी करेगा इससे? शादी में पैसा लगाओ, खेल में क्यों? बिना सपोर्ट और पैसों की तंगी के कारण उन्हें 2012 में रिटायर होना पड़ा. उन्होंने कहा, “मैंने चाहा नहीं था, लेकिन मजबूरी थी.”
आज भी संघर्ष जारी
हेतल आज भी कहती हैं, उन्होंने ज़िंदगी खेल को दी, लेकिन आज भी बेसिक नौकरी के लिए भटक रही हैं. उनकी मेहनत का असर इतना गहरा था कि उनकी कहानी पर “सूमो दीदी” नाम की फिल्म भी बनी. इस फिल्म के लिए उन्होंने अभिनेत्री श्रिय पिलगांवकर को खुद ट्रेन किया.
हेतल के पहले हीरो थे ब्रूस ली और जैकी चैन. बचपन में वे भाई को मार-मारकर उनकी नकल उतारतीं. पिता ने कहा कि क्लास जॉइन करो, भाई को मत मारो! आज भले ही उन्हें नौकरी की तलाश हो, लेकिन उनका संघर्ष और जुनून आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणा बनेगा. हेतल दवे- भारत की पहली और अकेली महिला सूमो पहलवान, हमारी असली सूमो दीदी.
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