दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के एक छोटे से गांव का 25 वर्षीय युवक ओवैस खान अपने अद्भुत नवाचार के लिए सुर्खियों में है. सिर्फ़ छठी क्लास तक पढ़े ओवैस ने अपनी मेहनत और लगन से सेब उठाने और ले जाने का एक टूल बनाया है, जिससे स्थानीय किसानों और बागवानों का काम आसान और सुरक्षित हो गया है.
ऑनलाइन सीखकर बनाई मशीन
ओवैस ने बताया कि उन्होंने स्कूल पढ़ाई आर्थिक तंगी के कारण छोड़ दी थी, लेकिन सीखना कभी नहीं छोड़ा. उन्होंने ईटीवी भारत को बताया, “कुछ साल पहले एक आइडिया आया और मैंने इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया. मकसद था कि परिवार और पड़ोसियों के लिए सेब के बक्से आसानी से बागों से नीचे लाए जा सकें.”
यूट्यूब और अन्य ऑनलाइन ट्यूटोरियल से प्रेरित होकर ओवैस ने सख्त पहाड़ी बागों से नीचे सेब के बक्से लाने वाली मशीन डिज़ाइन की. महीनों की मेहनत और प्रयोगों के बाद उन्होंने पुराने वाहन के हिस्सों और धातु के टुकड़ों से यह गोंडोला तैयार किया.
कम खर्च, अधिक बचत
ओवैस के मुताबिक यह किफायती गोंडोला सिर्फ 500 रुपये का पेट्रोल खर्च करता है, जबकि पहले प्रतिदिन लगभग 15,000 रुपये मज़दूरी में जाते थे. यह मशीन बागानों में काम करने वाले श्रमिकों का समय बचाती है और चोट लगने का जोखिम भी कम कर देती है.
किसानों और श्रमिकों की राहत
स्थानीय किसान और मजदूर इस नवाचार की खूब सराहना कर रहे हैं. परवेज़ अहमद का कहा है कि सालों तक हम खतरनाक ढलानों पर भारी बक्से उठाकर ले जाते थे. ओवैस ने यह काम बहुत आसान और सुरक्षित कर दिया. यह साबित करता है कि बिना पढ़ाई के भी अगर मेहनत और सोच हो तो बड़ी चीज़ें हासिल की जा सकती हैं.
रोजगार और विस्तार की योजना
ओवैस खुद भी एक फल उगाने वाले किसान हैं और इस मशीन के चलते उनके बागानों की कार्यकुशलता बढ़ी है. वर्तमान में वह पांच श्रमिकों को रोजगार दे रहे हैं और भविष्य में और गोंडोले बनाने का प्लान है. ओवैस सरकार या निजी संगठनों से समर्थन चाहते हैं ताकि और ज्यादा केबल गोंडोले बनाकर स्थानीय किसानों की मदद कर सकें.
ओवैस खान की कहानी इस बात का उदाहरण है कि कॉलेज की फॉर्मल डिग्री जरूरी नहीं, मेहनत, लगन और सही सोच से इंसान महान उपलब्धियां हासिल कर सकता है. कश्मीरी बागानों में उनका यह गोंडोला अब किसानों के लिए सुविधा और सुरक्षा का प्रतीक बन चुका है.
-----------End----------------