केरल के पत्तनमतिट्टा जिले की नेदुंबपुरम ग्राम पंचायत ने बच्चों को नशा और मोबाइल की लत से बचाने के लिए एक अनोखी पहल शुरू की है, जिसका नाम है ‘कुट्टीकेयर.’ इस पहल का उद्देश्य बच्चों को संवेदनशील और सामाजिक बनाना है. इस प्रोजेक्ट के तहत 8वीं से 12वीं कक्षा के छात्र गांव के बीमार और बुजुर्ग लोगों से मुलाकात करते हैं, उनका हालचाल पूछते हैं और उन्हें जल्दी ठीक होने की हिम्मत देते हैं.
4 अप्रैल 2024 से शुरू हुई यह मुहिम अब नियमित रूप से चल रही है. छात्र गांव के विभिन्न वार्डों में जाकर उन घरों तक पहुंचते हैं, जहां बुजुर्ग या बीमार लोग रहते हैं. अब तक ये बच्चे 113 ऐसे मरीजों से मिल चुके हैं, जो बीमारी की वजह से बिस्तर पर हैं. इससे न सिर्फ बच्चों में संवेदनशीलता और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना बढ़ी है, बल्कि वे स्वास्थ्य के प्रति भी ज्यादा जागरूक हो गए हैं. ये बच्चे बीमारों को सांत्वना देने के साथ-साथ जरूरी सलाह भी देते हैं.
फर्स्ट एड ट्रेनिंग और डायरी सिस्टम
कुट्टीकेयर के तहत 16 बच्चों को प्राथमिक चिकित्सा (फर्स्ट एड) की ट्रेनिंग भी दी जा रही है. प्रोजेक्ट के प्रमुख और आयुर्वेदिक अस्पताल से जुड़े डॉक्टर अधिनेश गोपन ने दैनिक भास्कर को बताया कि बच्चे पहले गांव में सर्वे कर मरीजों की जानकारी इकट्ठा करते हैं. फिर उस डेटा का विश्लेषण करते हैं और महीने में कम से कम एक मरीज से मिलने जरूर जाते हैं, हालांकि वे चाहें तो ज्यादा मरीजों से भी मिल सकते हैं.
हर एक बच्चे को एक डायरी दी जाती है जिसमें वे अपने अनुभव, भावनाएं और मरीजों से जुड़ी जानकारियां दर्ज करते हैं. इस डायरी की हर महीने जांच होती है और सबसे बेहतर सेवा देने वाले बच्चे को पुरस्कार भी मिलता है. एक दिलचस्प बात यह है कि जैसे एनसीसी या रेड क्रॉस में भाग लेने वाले छात्रों को ग्रेस मार्क्स मिलते हैं, उसी तरह कुट्टीकेयर के वॉलंटियर छात्रों को भी 12वीं की परीक्षा में ग्रेस मार्क्स दिए जाएंगे. इस पहल से बच्चे भी काफी-कुछ सीख रहे हैं.
गांव में बच्चों के लिए अन्य प्रोजेक्ट्स भी
इस प्रोजेक्ट का मूल उद्देश्य बच्चों को संवेदनशील और दयालु नागरिक बनाना है. जब बच्चे बिस्तर पर पड़े किसी मरीज से संवाद करते हैं, तो उनके व्यवहार में सकारात्मक बदलाव आता है. उनकी सोच और भावनाएं विकसित होती हैं. गांव के लोग अपने बच्चों को नशे और ग़लत आदतों से दूर रखना चाहते हैं. कुट्टीकेयर इसी दिशा में ग्राम पंचायत का एक प्रयास है. वे चाहते हैं कि सेवा बच्चों की आदत और जुनून बन जाए. जब बच्चे दूसरों के दर्द और समस्याओं को समझेंगे, तभी वे बेहतर इंसान बनेंगे.