अक्सर माता-पिता बच्चों को समझाने में थक जाते हैं, लेकिन बच्चे फिर भी अपनी मर्जी से ही काम करना चाहते हैं. ऐसे में आजकल एक नई पेरेंटिंग स्टाइल चर्चा में है, FAFO Parenting. इसका मतलब है, बच्चों को बार-बार समझाने के बजाय उन्हें अपने कामों के नतीजे खुद अनुभव करने देना.
अनुभव से सीखना, लेक्चर से नहीं
दिल्ली की 34 वर्षीय मां गायत्री सेठी जैन बताती हैं कि उन्होंने एक बार बच्चों को ठंड में स्वेटर पहनने को कहा, लेकिन वे नहीं माने. कुछ देर बाद ठंड लगते ही उन्होंने खुद स्वेटर पहन लिया. तभी उन्हें एहसास हुआ कि एक वास्तविक अनुभव दस लेक्चर से ज्यादा सिखा सकता है. यही FAFO पेरेंटिंग का मूल सिद्धांत है कि बच्चे खुद अनुभव से सीखें.
जेंटल पेरेंटिंग बनाम FAFO
बीते कुछ वर्षों में जेंटल पेरेंटिंग काफी लोकप्रिय हुई, लेकिन कई माता-पिता मानते हैं कि केवल यह तरीका बच्चों को पर्याप्त सीमाएं नहीं देता. FAFO पेरेंटिंग को जेंटल पेरेंटिंग का संतुलित रूप माना जा रहा है. इसमें माता-पिता प्यार और संवाद बनाए रखते हैं, लेकिन साथ ही बच्चों को अपने फैसलों के नतीजे झेलने देते हैं.
मनोविज्ञान से मेल
मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि यह तरीका बच्चों के विकास के सिद्धांतों से मेल खाता है. जीन पियाजे ने कहा था कि बच्चे सक्रिय अनुभवों से सीखते हैं, जबकि वाइगोत्स्की ने स्कैफोल्डिंग पर ज़ोर दिया था यानी बस उतनी मदद देना जिससे बच्चा खुद सीख सके. हालांकि, विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि यह तरीका उपेक्षा नहीं है बल्कि विश्वास है कि बच्चे को यह महसूस कराना कि माता-पिता उस पर भरोसा करते हैं.
वास्तविक उदाहरण
एक मां ने बताया कि उनका बेटा खेल में इतना व्यस्त रहता कि खाना ठंडा हो जाता. उन्होंने याद दिलाना बंद कर दिया और जब बेटे ने ठंडा खाना खाया तो उसने खुद समय पर खाना सीख लिया. एक अन्य मां ने 75-25 रूल अपनाया जिसमें 75% संवाद और मार्गदर्शन, 25% बच्चों को नतीजे अनुभव करने देना.
क्या है सावधानियां और सीमाएं
हर स्थिति FAFO के लिए उपयुक्त नहीं होती. जैसे, बच्चे को बिजली के सॉकेट से छेड़छाड़ करने देना खतरनाक हो सकता है. इसलिए यह तरीका आयु-उपयुक्त और सोच-समझकर अपनाना चाहिए. साथ ही, नतीजों को कभी भी सज़ा या ताने में नहीं बदलना चाहिए, वरना बच्चे डर और शर्म से सच छिपाने लगेंगे.
संतुलन ही कुंजी
विशेषज्ञों का मानना है कि सबसे सही तरीका है जेंटल और FAFO का संतुलन. ज्यादा समझाना बच्चों को बोझिल कर सकता है और बिल्कुल छोड़ देना उन्हें असुरक्षित बना सकता है. जैसे बागवानी में न ज़्यादा पानी देना चाहिए, न बिल्कुल छोड़ देना—ठीक संतुलन से ही पौधे अच्छी तरह बढ़ते हैं.