22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में स्थित शांत और खूबसूरत बैसारन घाटी में आतंक का साया छा गया, जब कुछ आतंकियों ने बेखौफ होकर घूम रहे पर्यटकों पर अचानक गोलीबारी शुरू कर दी. इस सबके बीच डर से सहमे पर्यटकों को कश्मीरियों ने अपना घर और दिल खोलकर पनाह दी. पिछले चंद दिनों में, जो लोग अजनबी थे, वे अब जिंदगीभर के दोस्त बन गए हैं.
पुणे की रहने वाली रुपाली पाटिल छुट्टियां मनाने पहलगाम गई थीं. उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, "हमले की खबर सुनकर मैं होटल के कमरे से बाहर निकलने में भी डर रही थी. लेकिन उस अफरा-तफरी और डर के माहौल में, कश्मीरियों के घरों में हमें सुकून और सुरक्षा मिली. कुछ कश्मीरी लोग तो हमारे ग्रुप के दूसरे मेंबर्स को खोजकर सुरक्षित वापस भी लाए."
'हमारी इंसानियत, आतंकियों की नफरत से कहीं ज़्यादा बड़ी है'
महाराष्ट्र के ही रामदास खोपड़े को सोपोर के आदिल मलिक नामक एक कश्मीरी ने अपने घर में पनाह दी. वह सुरक्षित जगह ढूंढ रहे थे, तभी इस कश्मीरी परिवार से मुलाकात हुई. उन्होंने न सिर्फ रामदास को अपने घर में जगह दी, बल्कि पैसे लेने से भी साफ मना कर दिया. मलिक परिवार ने कहा कि वे इस संकट की घड़ी में दुनिया को एक सकारात्मक संदेश देना चाहते हैं. आदिल मलिक ने कहा, "पहलगाम में जो हुआ, वह एक कायराना हमला था. लेकिन हम ये कहना चाहते हैं कि आतंकियों की नफरत से हमारी इंसानियत कहीं ज़्यादा मजबूत है." इस हमले के कारण सैकड़ों कश्मीरी परिवारों का पूरा टूरिज़्म सीजन खराब हो गया है. लेकिन कश्मीरियों की पहली प्राथमिकता है- हर एक पर्यटक की सुरक्षा. उनका कहना है कि वे किसी भी सैलानी को परेशान नहीं होने देंगे.
यही है असली कश्मीरियत
आदिल शेख टैक्सी ड्राइवर और टूरिस्ट गाइड हैं. उन्होंने श्रीनगर के पास अपने घर में महाराष्ट्र के एक और पर्यटक ग्रुप को पनाह दी है. उन्होंने कहा कि कश्मीर की मेहमाननवाज़ी पूरी दुनिया में मशहूर है. आज उसे आतंकियों ने चुनौती दी है, लेकिन इन लोगों का कश्मीर की परंपरा और संस्कृति से कोई वास्ता नहीं है. इसी तरह, अनंतनाग के रहने वाले और ऊनी कपड़ों के व्यापारी नजाकत अली एक असली हीरो बनकर सामने आए हैं.
हर साल सर्दियों में छत्तीसगढ़ के चिरमिरी शहर जाने वाले नजाकत आतंकी हमले के समय चार परिवारों को घुमा रहे थै. इस ग्रुप में तीन बच्चों सहित कुल 11 लोग थे. अपनी सूझबूझ और इलाके की जानकारी की मदद से नजाकत ने सबको सुरक्षित रास्ते से बाहर निकाला. टूरिस्ट अरविंद अग्रवाल ने The Observer को बताया कि नजाकत भाई बिल्कुल भी घबराए नहीं. उन्होंने एक बच्चे को अपनी पीठ पर बैठाया, एक को गोद में लिया और सबको सही-सलामत बाहर निकाल लिया.
फिर वह सबको अपने लॉज में ले गए और जब तक हम छत्तीसगढ़ के लिए सुरक्षित रवाना नहीं हो गए, तब तक उन्हें वहीं पनाह दी. बताया जा रहा है कि इस हमले में नजाकत के चाचा, आदिल हुसैन शाह, की मौत हो गई. लेकिन नजाकत ने पहले लोगों की जान बचाने को प्राथमिकता दी, और अपने दुख को बाद में संभाला.
ऑटो-रिक्शा और टैक्सी वालों की दरियादिली
कश्मीर के ऑटो-रिक्शा चालकों और टैक्सी ड्राइवरों ने भी इंसानियत का बेहतरीन उदाहरण पेश किया है. वे हवाई अड्डे और रेलवे स्टेशन की ओर जा रहे फंसे हुए पर्यटकों को मुफ्त सवारी दे रहे हैं. लाल चौक में रिक्शा स्टैंड के मुखिया बशीर अहमद बडयारी और उनके साथी चालकों ने इस नेक काम के लिए 18 रिक्शा समर्पित किए हैं. कश्मीरियों की यह दरियादिली दुनिया का दिल जीत रही है. कश्मीर एक ऐसा इलाका है जिसे अक्सर लड़ाई-झगड़े के नजरिए से देखा जाता है, लेकिन कश्मीरियों ने दिखाया है कि सच्चा भारतीय नागरिक होना क्या होता है.