शेप वाले ताबूत... कॉफिन डांसर्स और गाजे-बाजे के साथ मौत का त्योहार! घाना में कुछ इस तरह मनाया जाता है मृत्यु पर अनोखा जश्न!

भारत में मृत्यु का मतलब है शोक, सादगी और गमगीन माहौल. लेकिन घाना में यह पूरी तरह उलट है! यहां मृत्यु को जीवन की एक नई शुरुआत माना जाता है, और इसे जश्न की तरह मनाया जाता है. घाना की गा, फांटे, ईवे और असांटे जनजातियां सदियों से इस परंपरा को निभा रही हैं.

घाना की अनोखी परंपरा (फोटो-गेटी इमेज)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 03 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 12:30 PM IST

क्या आपने कभी सोचा कि मौत को भी शादी की तरह धूमधाम से मनाया जा सकता है? अगर नहीं, तो घाना की इस परंपरा को जानकर आप हैरान रह जाएंगे! यहां मृत्यु को शोक नहीं, बल्कि रंग-बिरंगे ताबूतों, डांस करने वाले पॉलबेयरर्स और गाजे-बाजे के साथ एक भव्य उत्सव की तरह मनाया जाता है. शेप वाले ताबूत और कॉफिन डांसर्स की यह परंपरा दुनियाभर में वायरल है, और हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घाना यात्रा ने इसे और सुर्खियों में ला दिया.

30 साल बाद किसी भारतीय पीएम की यह पहली द्विपक्षीय यात्रा थी, जहां घाना के राष्ट्रपति जॉन ड्रामानी महामा ने प्रोटोकॉल तोड़कर एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया. 21 तोपों की सलामी और ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ की भक्ति धुन के बीच, घाना की मौत को जश्न बनाने वाली परंपरा ने सबका ध्यान खींच लिया.

मौत नहीं, जिंदगी का जश्न!
भारत में मृत्यु का मतलब है शोक, सादगी और गमगीन माहौल. लेकिन घाना में यह पूरी तरह उलट है! यहां मृत्यु को जीवन की एक नई शुरुआत माना जाता है, और इसे जश्न की तरह मनाया जाता है. घाना की गा, फांटे, ईवे और असांटे जनजातियां सदियों से इस परंपरा को निभा रही हैं. उनके लिए अंतिम संस्कार कोई साधारण रस्म नहीं, बल्कि संगीत, नाच-गाना और भव्य दावत का मौका है.

स्विस मानवशास्त्री रेगुला त्सचुमी, जो पिछले 20 साल से घाना की एसी परंपराओं का अध्ययन कर रही हैं, ने अपनी किताब Buried in Style: Artistic Coffins and Funerary Culture in Ghana में लिखा है कि घाना में अंतिम संस्कार एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव है. परिवार और समुदाय मिलकर मृतक की जिंदगी को ऐसे याद करते हैं, जैसे कोई बड़ा त्योहार हो. 

शेप वाले ताबूत
घाना की सबसे मशहूर परंपरा है फैंटेसी कॉफिन्स यानी शेप वाले ताबूत. ये ताबूत कोई साधारण लकड़ी के डिब्बे नहीं, बल्कि मृतक के पेशे, शौक या जिंदगी को दर्शाने वाली कला का नमूना हैं. अगर मृतक मछुआरा था, तो उसका ताबूत मछली की शक्ल का होगा. अगर वह बढ़ई था, तो हथौड़े या आरी के आकार का. ड्राइवर के लिए कार या ट्रक, और अमीर लोग तो हवाई जहाज या मर्सिडीज बेंज के आकार का ताबूत बनवाते हैं!

फोटो-गेटी इमेज

2009 में एक पुजारी और मछुआरे को नीले चायदानी के ताबूत में दफनाया गया, तो 2024 में नुंगुआ के सुप्रीम ट्रेडिशनल मिलिट्री लीडर को शेर के आकार के ताबूत में अंतिम विदाई दी गई. इन ताबूतों को बनाने वाले कारीगर इसे पवित्र कला मानते हैं. रेगुला त्सचुमी के मुताबिक, ये ताबूत न सिर्फ मृतक की यादों को जिंदा रखते हैं, बल्कि समुदाय को एकजुट करने का काम भी करते हैं. 

कॉफिन डांसर्स
अब बात करते हैं घाना के कॉफिन डांसर्स की. सूट-बूट में सजे पॉलबेयरर्स ताबूत को कंधे पर उठाकर कोरियोग्राफ्ड डांस करते हैं, और उनके पीछे मृतक के रिश्तेदार गीत-संगीत के साथ चलते हैं. इस परंपरा को बेंजामिन ऐडू ने मशहूर किया. पहले पॉलबेयरर्स शांति से ताबूत को कब्रिस्तान ले जाते थे, लेकिन बेंजामिन ने इसमें डांस का तड़का जोड़ा. 2017 में एक परिवार ने अपने परिजन के लिए इन डांसर्स को बुलाया, और इसका वीडियो इतना वायरल हुआ कि इसे तमिलनाडु पुलिस ने कोरोना जागरूकता के लिए कॉपी किया. ये डांसर्स न सिर्फ मृतक को सम्मान देते हैं, बल्कि माहौल को हल्का और उत्सवी बनाते हैं. 

अंतिम संस्कार या त्योहार?
घाना में अंतिम संस्कार की शुरुआत चर्च में प्रार्थना से होती है, लेकिन इसके बाद माहौल पूरी तरह बदल जाता है. परिवार वाले मृतक की तस्वीर वाली टी-शर्ट पहनते हैं, घर में उनकी फोटो सजाई जाती है, और मेहमान रंग-बिरंगे डिजाइनर कपड़ों में सजे-धजे आते हैं. नाच-गाना, खाना-पीना और दावत का दौर शुरू होता है. घाना में मान्यता है कि जितने ज्यादा लोग अंतिम संस्कार में शामिल हों, उतना ही मृतक को सम्मानित और समाजसेवी माना जाता है.

इसीलिए, ये समारोह कई बार हफ्तों तक चलते हैं. परिवार वाले इस पर लाखों रुपये खर्च करते हैं, ताकि मृतक की विदाई यादगार हो. लेकिन कुछ लोग इसे फिजूलखर्ची भी मानते हैं. उनका कहना है कि इतना पैसा मृतकों पर खर्च करने की बजाय जीवित लोगों की मदद करनी चाहिए.

 

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