हर सुबह जब सूरज की सुनहरी किरणें श्रीनगर की शांत डल झील पर पड़ती हैं और धुंध को चीरती हुई उसकी सतह पर चमकती हैं, तब एक अकेली नाव चुपचाप तैरती हुई दिखाई देती है. इस नाव की पतवार संभाले एक 69 वर्षीय महिला होती है-चौड़ी टोपी लगाए, शांत संकल्प के साथ चप्पू चलाती हुई। उनका नाम है
69 वर्षीय एलिस हुबर्टिना स्पैंडरमैन नीदरलैंड्स की नागरिक हैं, लेकिन अब कश्मीर उनके दिल में बस चुका है. एलिस ने कश्मीर में जन्म नहीं लिया, लेकिन उनका इस घाटी से गहरा रिश्ता बन चुका है. आज एलिस कश्मीर की इतनी अपनी हो गई हैं कि उन्होंने डल झील को साफ करने का बीड़ा उठाया है. वह हर दिन डल झील से प्लास्टिक के कचरे को थोड़ा-थोड़ा इक्ट्ठा करके बाहर निकाल रही हैं.
एलिस लगभग 25 साल पहले पहली बार कश्मीर आई थीं और यहां की सुंदरता, संस्कृति और लोगों की गर्मजोशी ने उनका मन मोह लिया. वह यहां पर्यटक बनकर आई थीं, लेकिन इस जगह ने उनकी आत्मा को छू लिया और वह यहीं रह गईं.
द वायर से बात करते हुए एलिस ने बताया कि लोगों को तस्वीरों में डल झील की शांति, सुंदरता और आकर्षक शिकारा सैर दिखती है. लेकिन झील की सतह के नीचे तैरता प्लास्टिक कचरा, बोतलें, थैलियां लोगों को नजर नहीं आती हैं. ऐसे में, एलिस बिना किसी सरकारी मदद, अनुदान या प्रचार के, अपनी लकड़ी की नाव को एक तैरती हुई सफाई की यूनिट बना दिया है.
एलिस के पास कोई खास टूल नहीं है. वह खुद अपने हाथों से प्लास्टिक का कचरा साफ करती हैं. हर हफ्ते वह झील से कई किलो प्लास्टिक कचरा निकालती हैं. कभी-कभी बच्चे उन्हें देखकर हैरान होते हैं, तो कभी पर्यटक उन्हें स्थानीय गाइड समझ लेते हैं. लेकिन उनका यह काम न तो पर्यटन है, न शौक. बस पर्यावरण को बचाने की एक कोशिश है. उनका कहना है कि जब वह पहली बार कश्मीर आई थीं, तब झील इतनी गंदी नहीं थी. पानी साफ था.
डल झील सिर्फ एक प्राकृतिक जलस्रोत नहीं है, बल्कि श्रीनगर के लोगों के लिए जीने का सहारा है. हजारों लोगों की आजीविका, पर्यटन का केंद्र है. लेकिन बढ़ते शहरीकरण, निर्माण, पर्यटन के दबाव और कुशल कचरा प्रबंधन की कमी ने इसे गंभीर संकट में डाल दिया है.
हालांकि, सरकार की ओर से सफाई, ड्रेजिंग और अतिक्रमण विरोधी अभियानों जैसे प्रयास हुए हैं, लेकिन हालात ज्यादा नहीं सुधरे हैं. ऐसे में एलिस जैसे लोगों की व्यक्तिगत पहल ज्यादा प्रभावशाली प्रतीत होती है.
ये सिर्फ कश्मीर की समस्या नहीं है. प्लास्टिक प्रदूषण की कोई सीमा नहीं होती.
एलिस की कहानी इसलिए और भी खास है क्योंकि वह एक विदेशी हैं, उन्होंने उस समस्या को अपना समझा जिसे कई स्थानीय लोग अब नजरअंदाज कर देते हैं. वह बहुत से लोगों के लिए प्रेरणा हैं. बातचीत, सोशल मीडिया और उदाहरण के ज़रिए वह लोगों को आदतें बदलने, सोच बदलने और जिम्मेदारी लेने के लिए प्रेरित कर रही हैं.
एलिस अकेली नहीं हैं। जन्नत तारिक नाम की एक युवा पर्यावरण कार्यकर्ता ने तो महज पांच साल की उम्र में डल झील की सफाई शुरू कर दी थी. उनका "मिशन डल लेक" सोशल मीडिया के ज़रिए झील के संरक्षण का संदेश फैलाता है और उन्हें प्रधानमंत्री मोदी से भी सराहना मिल चुकी है.
इसके अलावा, पर्यावरण वकील नदीम कादरी द्वारा शुरू किया गया "जम्मू एंड कश्मीर ईको वॉच" अभियान झीलों, वनों और वेटलैंड्स की सुरक्षा के लिए सैकड़ों वॉलंटियर्स को एकजुट करता है. इन लोंगों की कहानी हमें यह सिखाती है कि बदलाव हमेशा नीतियों और बड़ी योजनाओं से नहीं आता. कभी-कभी सिर्फ एक इंसान का प्रयास ही प्रेरणा बन जाता है.