Sati curse story: इस गांव में दिवाली मनाने पर होती है मौत, सती के श्राप से सदियों से नहीं जलता एक भी दीया

Sammu village Diwali curse: इस गांव में न तो दीपक जलते हैं, न पटाखों की आवाज सुनाई देती है. यहां दिवाली मौत का संदेश लेकर आती है. इस गांव का नाम है सम्मू. यहां सदियों से लोग दीपावली नहीं मना रहे हैं.

Sati curse story
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 21 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 3:15 PM IST
  • इस गांव में दीपावली मनाने पर होती है मौत
  • दीप जलाने से होती है अनहोनी

देशभर में जहां दीपावली रोशनी, खुशियों और उत्सव का प्रतीक मानी जाती है, वहीं हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले का एक गांव ऐसा भी है जहां इस त्योहार के नाम से ही लोग सिहर उठते हैं. इस गांव में न तो दीपक जलते हैं, न पटाखों की आवाज सुनाई देती है. यहां दिवाली मौत का संदेश लेकर आती है. इस गांव का नाम है सम्मू. यहां सदियों से लोग दीपावली नहीं मना रहे हैं.

सदियों पुराना श्राप, जो आज भी लोगों को डराता है
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, कई शताब्दियों पहले इस गांव में एक सती नारी का श्राप लगा था. कहा जाता है कि किसी अन्याय और अपमान के बाद जब वह सती हुईं, तो उन्होंने क्रोधित होकर गांव को श्राप दिया “जिस दिन इस गांव में दीप जलेंगे, उसी दिन किसी न किसी की मौत होगी.” तब से आज तक यह श्राप टूटा नहीं. ग्रामीण बताते हैं कि जब भी किसी ने परंपरा तोड़ी और दीपावली मनाने की कोशिश की, गांव में अनहोनी जरूर हुई कभी मौत, कभी कोई एक्सीडेंट.

दीपावली की रात यहां होती है सन्नाटा
जहां देशभर में दीपों की जगमग होती है, वहां सम्मू गांव की रात अंधेरे में डूबी रहती है. लोग उस दिन घरों में दिए या लाइट तक नहीं जलाते. बच्चे भी पटाखे नहीं फोड़ते. उस दिन गांव में सन्नाटा छा जाता है, मानो समय थम गया हो. लोगों ने बचपन से सिर्फ यही सुना है कि जो दीपावली मनाएगा, उसके घर मातम छा जाएगा. इसलिए आज भी कोई इस रिवाज को नहीं तोड़ता.

जब किसी ने तोड़ी परंपरा, तो हुआ हादसा
करीब 40 साल पहले एक परिवार ने दीपावली के दिन घर में दीया जलाया था. अगले ही दिन परिवार के मुखिया की अचानक हार्ट अटैक से मौत हो गई. इसके बाद एक और घटना हुई. एक युवक ने दोस्तों के साथ दीपावली पर पटाखे जलाए, और अगले ही हफ्ते एक सड़क दुर्घटना में उसकी जान चली गई. इन घटनाओं के बाद किसी ने फिर कभी इस परंपरा को तोड़ने की हिम्मत नहीं की.

गांव के लोग कहते हैं कि यह केवल अंधविश्वास नहीं, बल्कि पूर्वजों की मान्यता और परंपरा है, जिसे वे आज भी निभा रहे हैं. कुछ युवा इस परंपरा को खत्म करना चाहते हैं, लेकिन बुजुर्गों का कहना है कि श्राप से खिलवाड़ करना ठीक नहीं.

इस गांव के लोग विज्ञान में तो भरोसा करते हैं पर यह भी सच है कि कई बार अजीब घटनाएं होती हैं जिन्हें वे खुद भी समझ नहीं पाते. इसलिए गांव ने सामूहिक रूप से यह तय किया कि दीपावली नहीं मनाई जाएगी.

बाकी त्योहार पूरे उत्साह से मनाते हैं
दिलचस्प बात यह है कि सम्मू गांव के लोग दीपावली को छोड़कर बाकी सभी त्योहार पूरे उत्साह से मनाते हैं. दशहरा, होली, बैसाखी और लोहड़ी के दिन गांव में खूब रौनक रहती है. गांव के मंदिरों में पूजा, भजन-कीर्तन और मेले लगते हैं. लेकिन दीपावली की रात गांव में घोर सन्नाटा रहता है.

कुछ साल पहले स्थानीय प्रशासन और एक शोध टीम ने इस परंपरा की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझने की कोशिश की थी. हालांकि कोई ठोस वैज्ञानिक कारण नहीं मिला, लेकिन टीम ने माना कि यह परंपरा स्थानीय संस्कृति और विश्वास का प्रतीक बन चुकी है.

सती माता की मर्यादा कायम रहनी चाहिए
गांव के लोग मानते हैं कि सती माता का श्राप केवल दंड नहीं, बल्कि एक मर्यादा है, जिसे तोड़ना अपमान होगा. इसलिए हर वर्ष दीपावली की रात वे सती स्थल पर दीपक जलाने की बजाय मौन श्रद्धांजलि देते हैं और शांत भाव से उस रात को गुजर जाने देते हैं.

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