जानवर और इंसान में दोस्ती कोई नई बात नहीं है. लेकिन इंसान की ऐसे जानवर से दोस्ती, जो सांपों से अपनी दुश्मनी के लिए फेमस है, हैरानी पैदा करता है. बात नेवले और इंसान की दोस्ती की हो रही है. वाराणसी में इन दिनों बलराम और उसके साथी चीकू यानी नेवले की दोस्ती की चर्चा है. इसके पीछे की कहानी भी दिलचस्प है.
7 साल पहले बलराम को मिला था नेवला-
लगभग 7 साल पहले एक नेवले का बच्चे को मणिकर्णिका घाट पर दुकान लगाने वाले बलराम को इलाके के ही एक शख्स ने इसलिए लाकर दिया, क्योंकि बलराम के जानवरों के प्रति प्रेम और लगाव से सभी वाकिफ थे. इसके बाद से बलराम ने नेवले के बच्चे को अपने बच्चे की तरह पालना शुरू कर दिया. सबसे बड़ी चुनौती थी कि नेवले के नवजात बच्चे को दूध पिलाना था. जिसके लिए बलराम ने रुई को दूध में भिगोकर नेवले के बच्चे को दूध पिलाया.
नाम दिया गया चीकू-
परिवार वालों ने भी उसे स्वीकार कर लिया और नाम 'चीकू' दे दिया. इसके बाद दिन बीतते गया और आज 7 सालों के बाद चीकू बलराम को एक पल के लिए भी नहीं छोड़ता है और इनकी दोस्ती के चर्चे भी दूर तक हैं. बलराम जो कुछ खाता है, उसे चीकू को भी अपने हाथों से खिलाता है.
बहुत समझदार है चीकू- बलराम
बलराम ने बताया कि चीकू बहुत समझदार नेवला है. घर और दुकान की हिफाजत भी कर लेता है और अंजान शख्स को पहचान जाता है. उन्होंने बताया कि 7 साल से चीकू साथ में है. मैं ही माता-पिता हूँ इसका. समय-समय पर इसके भूख-प्यास को समझकर खिलाते-पिलाते रहते हैं. महाराष्ट्र से गंगा घाट घूमने के लिए आए श्रद्धालु तो इसका पैर छूने के लिए बेचैन रहते है, क्योंकि नेवले को वे कुबेर की सवारी मानते हैं.
चीकू मिला तो भाग्य बदला- बलराम
बलराम कहते हैं कि जब से चीकू मिला है, तब से उनका गुडलक भी शुरू हो गया है. दादर नगर हवेली से काशी घूमने आए एक पर्यटक ने भी बलराम और चीकू की दोस्ती देखकर हैरान हो गए और जमकर तारीफ की. वहीं, बलराम के एक पड़ोस के दुकानदार ने भी बताया कि 7 साल से ये दोस्ती देख रहे हैं. आमतौर पर धारणा है कि नेवला नहीं पालना चाहिए, लेकिन नेवला भी वफादार होता है. इसे पालकर समाज में जानवरों के प्रति प्रेम का अच्छा संदेश दिया जा रहा है.
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