1. लाखों दीयों से जगमगाएंगे काशी के घाट
हिंदू धर्म में दिवाली और देव दीपावली का विशेष महत्व है. दिवाली के 15 दिनों के बाद देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है. इस बार 5 नवंबर 2025 को देव दीपावली है. उत्तर प्रदेश के बनारस में देव दीपावली बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है. भोलेनाथ की नगरी काशी के मनोरम घाटों, कुंडों और तालाबों पर देव दीपावली के दिन लाखों दीये जलाए जाते हैं. दिवाली का जहां संबंध प्रभु श्रीराम से है तो वहीं देव दीपावली का संबंध भगवान शंकर से है. आइए जानते हैं दिवाली और देव दीपावली में क्या अंतर है?
2. देव दीपावली पर बन रहे कई शुभ योग
इस बार 5 नवंबर 2025 को देव दीपावली पर कई शुभ योग बन रहे हैं. इस दिन सिद्धि योग, शिववास योग और अश्विनी-भरणी नक्षत्र का महासंयोग बन रहा है. ये सभी योग देव दीपावली के दिन को अत्यंत मंगलमय बना रहे हैं. देव दीपावली पर पूर्णिमा तिथि का शुभारंभ 4 नवंबर 2025 की रात्रि 10:36 बजे से होगा और इसका समापन 5 नवंबर 2025 की शाम 6:48 बजे होगा. 5 नवंबर 2025 को प्रदोष काल का मुहूर्त शाम 5:15 बजे से 7:50 बजे तक
रहेगा.
3. दिवाली और देव दीपावली में मुख्य अंतर
दिवाली जहां कार्तिक अमावस्या को मनाई जाती है, वहीं देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाती है. दिवाली भगवान राम की रावण पर विजय के बाद अयोध्या वापसी का उत्सव है. उधर, देव दिवाली भगवान शंकर द्वारा त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करने की खुशी में मनाई जाती है. दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का महत्व होता है. देव दिवाली पर भगवान शिव की पूजा और गंगा स्नान का विशेष महत्व है.
4. क्यों मनाई जाती है देव दीपावली
देव दीपावली को देवताओं की दिवाली भी कहा जाता है. इस दिन भोलेनाथ ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था. यह दिन भगवान शिव की राक्षस त्रिपुरासुर पर विजय की याद में मनाई जाती है. मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने ब्रह्मांड की रक्षा की थी और उसी खुशी में सभी देवता काशी में प्रकट हुए थे. वाराणसी के घाटों पर जब दीप जलते हैं, तो माना जाता है कि देवता स्वयं वहां उपस्थित होते हैं.
5. की जाती है गंगा आरती
देव दिवाली का पर्व उत्तर प्रदेश के वाराणसी और उत्तराखंड के हरिद्वार और ऋषिकेश समेत कई शहरों में धूमधाम से मनाया जाता है. यहां पवित्र घाटों पर वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ गंगा आरती की जाती है जिसका नजारा बहुत ही आनंददायक होता है. शाम के समय गंगा के घाटों पर लाखों दीपक जलाए जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि देव दिवाली के दिन जो भी व्यक्ति सच्चे मन से भगवान शिव की आराधना करता है उसके जीवन से अंधकार मिट जाता है और घर में सुख-समृद्धि आती है.
6. देव दिवाली के दिन स्नान और दान का है विशेष महत्व
देव दिवाली के दिन कार्तिक पूर्णिमा होती है. इस दिन स्नान और दान का भी बहुत महत्व होता है. इस दिन गंगा में आस्था की डुबकी लगाने से पापों से मुक्ति और शुभ फल की प्राप्ति होती है. स्नान के बाद भगवान विष्णु और शिव दोनों की पूजा की जाती है. इस पावन दिन मिट्टी के दीये जलाकर गंगा में प्रवाहित किए जाते हैं. माना जाता है कि इस दिन किया गया दीपदान और पूजा से कई गुना फल मिलता है. यह दिन भगवान कार्तिक की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. कार्तिक भगवान शिव की ही संतान हैं. देव दीपावली के दिन लोग अपने घरों को रंगोली और मोमबत्ती और दीयों से सजाते हैं. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि महादेव की नगरी काशी में देव दिवाली पर देवता निवास करने आते हैं.