भगवान गणेश की आकर्षकता, उनकी मधुरता और उनकी बुद्धिमत्ता का कोई सानी नहीं है. वे विघ्नहर्ता हैं, यानी सभी बाधाओं और समस्याओं को दूर करने वाले. वे ज्ञान और बुद्धि के देवता हैं और सबसे बढ़कर, वे सबके प्रिय हैं. गणेश चतुर्थी के अवसर पर, देशभर में सुंदर गणपति बप्पा की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और हर प्रतिमा में उनकी सूंड पर खास ध्यान दिया जाता है.
अगर आप ध्यान से गणपति बप्पा की मूर्ति को देखें, तो ज़्यादातर मूर्तियों में उनकी सूंड बाईं ओर मुड़ी होती है. लेकिन एक जगह पर ऐसा नहीं है- मुंबई के प्रसिद्ध सिद्धिविनायक मंदिर में. यह मंदिर प्रभादेवी में स्थित है और यहां की गणेश प्रतिमा की सूंड दाईं ओर मुड़ी हुई है. लगभग 224 साल पहले इस प्रतिमा की स्थापना हुई थी. उस समय मंदिर छोटा था और इसमें सिर्फ़ काले पत्थर की ढाई फीट चौड़ी गणपति की मूर्ति स्थापित थी.
मंदिर की वेबसाइट के अनुसार, इस प्रतिमा की सबसे खास बात इसकी सूंड का दाईं ओर मुड़ना है.
बाईं या दाईं ओर की सूंड
कहा जाता है कि रिद्धि, जो समृद्धि और धन की प्रतीक हैं, गणेश जी के बाएं बैठती हैं, जबकि सिद्धि, जो ज्ञान और आध्यात्मिक शक्तियों की प्रतीक हैं, दाएं बैठती हैं. इसी वजह से, अधिकतर गणेश प्रतिमाओं में सूंड दाईं ओर मुड़ी होती है, जो शांत और सौम्य ऊर्जा का प्रतीक मानी जाती है. वहीं, सिद्धि गणेश की प्रतिमा की सूंड दाईं ओर मुड़ी होती है.
सूंड की दिशा का महत्व
सूंड की दिशा इस बात का संकेत देती है कि भक्त क्या चाहते हैं:
लेकिन यह भी माना जाता है कि दाईं ओर सूंड वाले गणेश जी बहुत शक्तिशाली होते हैं. उनकी पूजा और अनुष्ठान बेहद सावधानी से और सही विधि से करने चाहिए. अगर पूजा सही तरीके से न हो, तो नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं.
इसीलिए, घर में गणपति बप्पा की स्थापना करते समय अधिकतर लोग बाईं ओर सूंड वाली मूर्ति लाते हैं, क्योंकि यह चंद्रमा की शांत और सुखद ऊर्जा से जुड़ी मानी जाती है.
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