बिहार के गयाजी में चल रहे पितृपक्ष मेले में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए पिंडदान करने पहुंचे हैं. विष्णुपद मंदिर क्षेत्र के देवघाट पर आस्था का अद्भुत नजारा देखने को मिल रहा है, जहां कोई बेटा अपने पिता के लिए, कोई बेटी अपनी माता के लिए, कोई पत्नी अपने पति के लिए और कोई माता-पिता अपने दिवंगत बच्चों के मोक्ष के लिए पिंडदान कर रहे हैं.
पितृपक्ष का महत्व और मान्यता
हिंदू धर्मग्रंथों में उल्लेखित है कि गयाजी में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह मेला हर वर्ष 15 से 17 दिनों तक आयोजित होता है, जिसे महालय पक्ष भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस अवधि में सभी मृत आत्माएं गयाजी में आती हैं और अपने वंशजों का इंतजार करती हैं, ताकि वे यहां आकर पिंडदान करें और उन्हें मुक्ति दिलाएं.
राम-सीता की पौराणिक कथा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम भी माता सीता के साथ गयाजी आए थे और उन्होंने यहां फल्गु नदी के तट पर अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था. कहा जाता है कि जब रामजी पिंडदान की सामग्री लेने गए, तब माता सीता ने बालू से पिंड तैयार कर पिंडदान किया था. इस घटना में फल्गु नदी, गाय, तुलसी और ब्राह्मणों ने गवाही देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद माता सीता ने उन्हें श्राप दिया. वहीं, अक्षयवट वृक्ष ने सत्य की गवाही दी, जिसके कारण इसे आज भी आशीर्वाद प्राप्त है.
विष्णुपद मंदिर और देवघाट का महत्व
गयाजी का विष्णुपद मंदिर और देवघाट पिंडदान का सबसे प्रमुख स्थल माना जाता है. यहाँ पर आचार्य, पंडा और पुरोहित तीर्थयात्रियों को विधि-विधान से पिंडदान कराते हैं. गयाजी में पिंडदान करने से पितृ ऋण और मातृ ऋण से मुक्ति मिलती है. यहां एक दिन से लेकर 17 दिनों तक पिंडदान की परंपरा है. जो श्रद्धालु पूरे 17 दिन पिंडदान करते हैं, उसे त्रिपाखी श्राद्ध कहा जाता है.
देवघाट पर पिंडदान करा रहे आचार्य उनीस चंद्रा ने कहा, "पितृपक्ष के महीने में गयाजी एक अद्वितीय तीर्थ बन जाता है. यहां पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. भटकती आत्माएं शांति पाती हैं और पिंडदानी अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं."
तीर्थयात्रियों की भावनाएं
देश के कोने-कोने से आए तीर्थयात्रियों ने बताया कि वे गयाजी इसलिए आए हैं ताकि अपने दिवंगत परिजनों की आत्मा को मोक्ष दिला सकें. एक तीर्थयात्री ने कहा, "हम यहां अपने पितरों की शांति के लिए पिंडदान करने आए हैं. मान्यता है कि गयाजी में पिंडदान करने से पितरों को स्वर्ग में स्थान मिलता है और हम पर उनका आशीर्वाद बना रहता है."
गयाजी का पितृपक्ष मेला न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि यह पारिवारिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों की भी जीवंत झलक है. लाखों श्रद्धालुओं का यहां एकत्रित होना इस बात का प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति में पितृ ऋण चुकाना और आशीर्वाद प्राप्त करना आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना प्राचीन काल में था.
(पंकज कुमार की रिपोर्ट)
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