हनुमान जी के ग्यारहवें रुद्रावतार बनने की कथा भगवान शंकर और ब्रह्मा जी के संवाद से जुड़ी है. बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने हनुमान जी के 11वें रुद्र अवतार बनने की पौराणिक कथा सुनाई. उन्होंने बताया कि एक बार पूरी पृथ्वी पर जल तत्व खत्म हो गया. कहीं पर जल बचा ही नहीं. ब्रह्मा जी परेशान हो गए. वह सोच में पड़ गए कि आखिर कौन जल तत्व को वापस लाएगा. उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था. ब्रह्मा जी भगवान शंकर के पास गए और बोले जल तत्व नहीं बचा है, बड़ी परेशानी हो गई है.
शरीर पांच तत्वों से मिलकर बनता है. उसके लिए भी जल जरूरी है वरना शरीर कैसे बनेगा. शंकर जी बोले जल तत्व कहां गया. ब्रह्मा जी बोले कि पता ही नहीं कोई पी गया. शंकर जी बोले चिंता मत कीजिए. महादेव ने अपने ग्यारहों रुद्रों को बुलाया. उनसे कहा कि क्या तुम में से कोई जल तत्व वापस प्रकट कर सकता है. 10 रुद्रों ने मना कर दिया. लेकिन जो ग्यारहवां रुद्र बचा, उन्होंने कहा, भोलेनाथ हम जल तत्व प्रकट तो कर सकते हैं लेकिन हमें अपने शरीर को गलाना पड़ेगा. भगवान शंकर और ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम चिंता मत करो, हम देवताओं को काम को पूर्ण कर दो, हम तुम्हें वचन देते हैं, तुम्हें नया रूप मिलेगा, नया नाम मिलेगा. उसी ग्यारहा रुद्र ने जब अपने आप को गलाया तो जल तत्व प्रकट हुआ, जब जल तत्व प्रकट हुआ तो वह 11वां रुद्र शून्य हो गया, लेकिन भगवान शंकर के आशीर्वाद से वहीं 11वां रुद्र पुनः बानर बनकर वीर हनुमान जी के रूप में प्रकट हुआ.
रावण के विनाश का रहस्य
रावण ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए अपने दस सिर चढ़ा दिए, लेकिन ग्यारहवें रुद्र को प्रसन्न नहीं कर सका. भगवान शंकर ने पार्वती जी से कहा कि जब त्रेता युग में राम जी का अवतार होगा, तब वे ग्यारहवें रुद्र के रूप में हनुमान बनकर रावण का विनाश करेंगे. रावण के अभिमान ने उसे भगवान शंकर की शिक्षा को स्वीकार करने से रोका.
विनम्रता का महत्व
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने हनुमान जी की विनम्रता और सरलता को जीवन में अपनाने का संदेश दिया. गोस्वामी तुलसीदास जी की पंक्तियों का उल्लेख करते हुए बताया गया कि विनम्रता ही व्यक्ति को महान बनाती है. हनुमान जी की तरह विनम्र और सरल बनने का आह्वान किया. हनुमान जी को चिंरजीवी होने का वरदान प्राप्त है. ऐसी धार्मिक मान्यता है बजरंगबली कलयुग में भी धरती पर विराजमान हैं. कहा जाता है कि जहां कहीं भी प्रभु श्रीराम का नाम लिया जाता है या अखंड रामायण का पाठ होता है, वहां पर हनुमान जी उसे सुनने के लिए पहुंच जाते हैं.