Navratri 2025: सबसे पहले मां शैलपुत्री की होती है पूजा.. बिना पुजारी के आप खुद कर सकते हैं अर्चना, कैसे पूजे और किन बातों का रखें ख्याल?

नवरात्र के पहले दिन मां के किस रूप की होती है पूजा? किन मंत्रों का करें उच्चारण? कैसे प्रसन्ना होगी मां?

Maa Shailputri (Photo: Pinterest)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 20 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:17 PM IST

22 सितंबर से नवरात्रि का आरंभ हो रहा है. नवरात्रि का पहला दिन नौ दिवसीय पावन उत्सव का शुभारंभ माना जाता है. यह दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की आराधना को समर्पित होता है. शैलपुत्री का अर्थ है, पर्वतराज हिमालय की पुत्री. इन्हें प्रकृति का स्वरूप, शुद्धता, शक्ति और शांति की प्रतिमूर्ति माना जाता है. इनके वाहन वृषभ (बैल) हैं और वे एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे हाथ में कमल धारण करती हैं. श्रद्धालु मानते हैं कि मां शैलपुत्री की पूजा से पूरे नवरात्रि उत्सव के लिए एक आध्यात्मिक आधार तैयार होता है.

पूजा की तैयारी और विधि
नवरात्रि की शुरुआत घर की सफाई और पूजन स्थल की सजावट से होती है. एक चौकी पर लाल या पीले रंग का वस्त्र बिछाकर मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. इसके बाद दीपक जलाएं और फूल, चावल, कुंकुम अर्पित करें. यदि जटिल मंत्रों का ज्ञान न हो तो साधारण मंत्र “ऊं शैलपुत्र्यै नमः” का जप करें. सच्चे मन से की गई प्रार्थना भी उतनी ही प्रभावी मानी जाती है.

कलश स्थापना का महत्व
पहले दिन की एक विशेष परंपरा है कलश स्थापना. इसे शुभ ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. कलश में जल भरकर उसके मुख पर आम्रपत्र रखें और ऊपर नारियल रखकर लाल वस्त्र से ढक दें. यह कलश अगले नौ दिनों तक मां दुर्गा की दिव्य उपस्थिति और समृद्धि का प्रतीक रहता है.

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पूजा का आरंभ और ध्यान
पूजा की शुरुआत शांति और ध्यान की अवस्था से करनी चाहिए. ध्यानपूर्वक मां शैलपुत्री का स्मरण करते हुए उनके नाम का जाप करें और उनसे शक्ति, शांति व आध्यात्मिक उन्नति की कामना करें. यह प्रक्रिया न केवल मन को शांत करती है बल्कि भक्ति भाव को भी प्रबल बनाती है.

पीले रंग का महत्व
नवरात्रि के पहले दिन का रंग पीला माना जाता है. पूजा के दौरान मां शैलपुत्री को पीले वस्त्र पहनाना, पीले फूलों से सजावट करना और स्वयं भी पीले वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है. प्रसाद के रूप में शुद्ध घी, दूध या पीले रंग की मिठाइयां अर्पित की जाती हैं.

ग्रह और आध्यात्मिक महत्व
मां शैलपुत्री को चंद्रमा का अधिष्ठात्री देवी माना जाता है. चंद्रमा मन और भावनाओं का कारक है. अतः उनकी आराधना से मानसिक स्थिरता, भावनात्मक संतुलन और जीवन की कठिनाइयों से लड़ने का साहस प्राप्त होता है. साथ ही यह परिवार में शांति, समृद्धि और सौभाग्य लाने वाली मानी जाती हैं.

साधना और मन की शुद्धता
पूजा के अतिरिक्त मन को सकारात्मक बनाए रखना भी आवश्यक है. कुछ समय ध्यान या “ऊं दुर्गाय नमः” का जप करने से मन में आभार की भावना जागृत होती है. माना जाता है कि फूल अर्पित करने या दीपक जलाने जैसे छोटे-से भक्ति भाव वाले कार्य भी नवरात्रि के पावन वातावरण से जोड़ते हैं.

 

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