आज पूरे देश में जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा की धूम है. ओडिशा के पुरी में आज भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की शुरुआत हो रही है. इसके लिए मंदिर को फूलों से सजाया गया है. श्रद्धालु अपने आंसू रोक नहीं पाते, खुशी के आंसू आ ही पड़ते हैं. मंदिर के चार द्वारों में से मुख्य द्वार सिंध द्वार है और दक्षिण द्वार पर बजरंगबली स्वयं उपस्थित रहते हैं. इस दौरान नृत्य प्रदर्शन भी हो रहा है.
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा मंदिर के सामने से शुरू होती है और सीधा दुबेश मंदिर तक जाती है. इस दौरान श्रद्धालुओं को भगवान के दर्शन के लिए धैर्य रखना पड़ता है. इस बार रथ यात्रा के दौरान 30 से 40 लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है. आज हम आपको बता रहे हैं जगन्नाथ पुरी से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों के बारे में.
जगन्नाथपुरी मंदिर का महत्व
जगन्नाथपुरी मंदिर को भारत के चार धामों में से एक माना जाता है. यह सदियों से भक्तों और यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करता आ रहा है. यहां भगवान विष्णु स्वयं दोपहर का भोजन करने आते हैं. इस मंदिर की भव्यता और रहस्यमयी गलियों ने हमेशा से ही लोगों को मंत्रमुग्ध किया है.
ब्रह्म परिवर्तन की प्रक्रिया
जगन्नाथपुरी मंदिर में हर 12 से 19 सालों में एक दिव्य अनुष्ठान संपन्न होता है, जिसे ब्रह्म परिवर्तन या नवकलेवर कहा जाता है. इस प्रक्रिया में मंदिर के विशिष्ट सेवक रात के अंधेरे में आंखों पर पट्टी बांधकर नाभि में स्थित ब्रह्मतत्व को पुराने विग्रह से नए विग्रह में स्थानांतरित करते हैं.
यह क्षण इतना पावन होता है कि इसे देखने की अनुमति किसी को नहीं होती. बताया जाता है कि यह प्रक्रिया अत्यंत गोपनीय और दैवीय विधान के अनुसार होती है.
अनोखा है जगन्नाथ का महाप्रसाद
जगन्नाथ मंदिर की रसोई विश्व की सबसे बड़ी रसोइयों में से एक है. यहां महाप्रसाद केवल मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है और भोजन पकाने का माध्यम सिर्फ आग और लकड़ी होता है. यहां 240 मिट्टी के चूल्हे हैं और 600 रसोइये हैं, जो भगवान जगन्नाथ के लिए विभिन्न प्रकार के चावल, सब्ज़ियां और मिठाइयां बनाते हैं.
महाप्रसाद बनाने के लिए सात मिट्टी के बर्तनों को एक-दूसरे के ऊपर रखा जाता है और नीचे लकड़ी की आग से खाना पकाया जाता है. हैरानी की बात यह है कि सबसे ऊपर रखे बर्तन का प्रसाद सबसे पहले पकता है, फिर नीचे वाले बर्तनों में प्रसाद पकता है.
ध्वज की दिशा
जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर लगा ध्वज हवा की दिशा के विपरीत लहराता है. लगभग 1800 वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार, एक पुजारी प्रतिदिन मंदिर के शिखर पर चढ़कर ध्वज को बदलता है. ऐसा कहा जाता है कि अगर यह अनुष्ठान किसी एक दिन भी छोड़ दिया जाए, तो मंदिर पूरे 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा. यह मंदिर लगभग 45 मंजिला इमारत जितना ऊंचा है.
बिना छाया वाला मंदिर
जगन्नाथ मंदिर की एक रहस्यमय बात यह है कि इस पर कभी कोई छाया नहीं पड़ती. चाहे दिन का कोई भी समय हो या सूरज किसी भी दिशा में हो, मंदिर की छाया ज़मीन पर नहीं दिखती. यह एक अद्भुत वास्तुशिल्प का नमूना है या चमत्कार- आज तक यह एक रहस्य बना हुआ है.
समुद्र की आवाज़ का बंद हो जाना
जब आप मंदिर के अंदर प्रवेश करते हैं, तो समुद्र की लहरों की आवाज़ अचानक बंद हो जाती है. मान्यता है कि देवी सुभद्रा ने मंदिर को शांतिपूर्ण स्थान बनाने की इच्छा जताई थी, और उनके कारण मंदिर के भीतर समुद्र की आवाज़ नहीं सुनाई देती.
मंदिर के ऊपर कुछ नहीं उड़ता
जगन्नाथ मंदिर के ऊपर न तो कोई पक्षी उड़ता है, न बैठता है, और न ही कोई विमान उस क्षेत्र के ऊपर से गुजरता है. यह भी एक रहस्य है जिसका अब तक कोई वैज्ञानिक कारण नहीं मिल पाया है.
चक्र की दिशा
मंदिर के ऊपर एक विशाल नीलचक्र स्थित है, जिसका वज़न करीब एक टन है. चमत्कारी बात यह है कि पुरी के किसी भी स्थान से देखने पर ऐसा लगता है कि चक्र सीधा आपकी ओर मुंह किए हुए है. इससे भी बड़ा रहस्य यह है कि 12वीं सदी में इतने भारी चक्र को इतनी ऊंचाई पर कैसे स्थापित किया गया होगा.