Navratri 2025: गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल गढ़ रहे हैं अब्दुल खलील, बनाते हैं देवी मां की इको-फ्रेंडली मूर्तियां

खलील ने महज़ 13 साल की उम्र से अपने पिता अब्दुल खालिद से मूर्तिकला की बारीकियां सीखनी शुरू की थीं.

Durga Maa Idol
gnttv.com
  • झांसी,
  • 19 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:57 AM IST

नवरात्रि का पर्व नज़दीक आते ही झांसी का फूटा चौपड़ा स्थित कालीबाड़ी इलाका इन दिनों कला और आस्था का अद्भुत संगम बना हुआ है. यहां मां दुर्गा की प्रतिमाओं को अंतिम रूप देने में व्यस्त हैं अब्दुल खलील. खलील एक ऐसे शिल्पकार, जिनकी कारीगरी यह साबित करती है कि कला और आस्था की कोई धर्म-सीमा नहीं होती.

पिता से सीखी विरासत
खलील ने महज़ 13 साल की उम्र से अपने पिता अब्दुल खालिद से मूर्तिकला की बारीकियां सीखनी शुरू की थीं. खालिद ने करीब 45 साल तक देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाकर शहर की सेवा की. अब उनकी विरासत को बेटे खलील ने बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं.

मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से बनीं प्रतिमाएं
झासी के सात बड़े पंडालों की प्रतिमाएं खलील अपने हाथों से तैयार करते हैं. खास बात यह है कि उनकी सभी मूर्तियां पर्यावरण अनुकूल होती हैं. इसमें मिट्टी और प्राकृतिक, बिना केमिकल वाले रंगों का इस्तेमाल होता है, जिससे विसर्जन के बाद पानी प्रदूषित नहीं होता और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता.

तय कीमत नहीं, श्रद्धा का सम्मान
खलील का कहना है कि वह मूर्तियां बनाने के लिए कभी तय कीमत नहीं लेते. लोग उन्हें जितना भी देते हैं, वे उसे आभार स्वरूप स्वीकार कर लेते हैं. उनके मुताबिक, यह सिर्फ़ कला नहीं बल्कि आस्था और पिता की दी हुई शिक्षा है.

खलील की मूर्तियों के चेहरे पर मुस्कान और चमक देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती है. यही वजह है कि लोग कहते हैं, उनकी मूर्तियों में सजीवता का अहसास होता है.

गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल
सबसे बड़ी बात यह है कि मुस्लिम होकर भी खलील पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ मां दुर्गा की मूर्तियां गढ़ते हैं. उनके हाथों बनी प्रतिमाओं की विधिवत पूजा होती है. यह दृश्य झांसी की गंगा-जमुनी तहज़ीब और भाईचारे की अनोखी मिसाल पेश करता है.

आज अब्दुल खलील का नाम झांसी ही नहीं बल्कि पूरे बुन्देलखण्ड में सबसे बड़े और बेहतरीन मूर्तिकारों में गिना जाता है. हर साल नवरात्रि पर उनके हाथों बनी प्रतिमाएं लाखों भक्तों को देवी मां के दर्शन कराती हैं. खलील की कारीगरी और समर्पण यह संदेश देते हैं कि इंसानियत और आस्था ही असली धर्म है, और कला की कोई सरहद नहीं होती.

(अजय झा की रिपोर्ट)

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