यह सृष्टि-चक्र वस्तुतः शक्ति-चक्र है, जिसमें प्रत्येक प्राणी किसी-न-किसी रूप में सहभागी है. किंतु शारीरिक बल की सीमाएं अल्पकालिक हैं; साधक के लिए वास्तविक साधना आत्म-शक्ति की है, जो आध्यात्मिक चेतना की संवाहिका होती है. नवरात्र का तृतीय दिवस इसी कालातीत आत्म-शक्ति की उपासना का अवसर देता है.
इस दिन पूजित देवी का स्वरूप ‘चंद्रघण्टा’ कहलाता है. ‘चंद्रघण्टा’ शब्द का अर्थ है-‘चंद्रमा घंटा के रूप में शोभित है मस्तक पर जिसके’ (बहुव्रीहि समास). “चंद्र: घंटायां यस्या: सा चंद्रघंटा.” यहां चंद्रमा शीतलता और शुभ्र ज्योत्स्ना का प्रतीक है, जो मन की सौम्यता और संतुलन का द्योतक है.
शास्त्रों में वर्णित है कि इस रूप में मां के दस हाथ हैं, जो पांच कर्मेन्द्रियों और पांच ज्ञानेंद्रियों का प्रतिनिधित्व करते हैं. इस प्रकार यह स्वरूप सम्पूर्ण दक्षता और शक्ति का प्रतीक है. मस्तक पर सुशोभित चंद्रमा सौम्य आचरण का सूचक है, और सिंह-वाहन साधक के आंतरिक बल का बोध कराता है. सिंह यहाँ कोई बाह्य पशु नहीं, बल्कि भीतरी शक्ति का प्रतीक है, जिसे नियंत्रित और संयमित रखना आवश्यक है.
इस रूप की साधना ‘मणिपुर चक्र’ से संबद्ध है, जो नाभि पर स्थित है और शक्ति व नाद का स्रोत माना जाता है. स्मरणीय है कि नाभि से ही ध्वनि-ऊर्जा की उत्पत्ति होती है; अतः इस दिन की साधना में साधक का एकाग्र और सतर्क रहना अनिवार्य है.
आध्यात्मिक दृष्टि से चंद्रघण्टा की कृपा से साधक को अलौकिक अनुभूतियां प्राप्त होती हैं- दिव्य गंध, अदृश्य वस्तुओं का अनुभव और विविध दिव्य ध्वनियों का श्रवण. इनकी उपासना हेतु मंत्र है-
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता.
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता.
यह श्लोक मां की शक्ति, दया और विजय का संक्षिप्त परिचय देता है. शास्त्रों में इनके गुणों का विस्तार से वर्णन मिलता है, जो इस रूप की विशिष्टता और महत्ता को प्रमाणित करता है.
मां चंद्रघण्टा का स्वरूप शीतलता, साहस और आत्म-शक्ति का अद्भुत समन्वय है. नवरात्र के तृतीय दिवस इस रूप की उपासना साधक को भय, संकोच और विघ्नों से मुक्त कर दिव्यता और स्थिरता प्रदान करती है. यह साधना साधक को आत्मबल और धैर्य के सहारे जीवन के प्रत्येक संघर्ष का समर्थतापूर्वक सामना करने की शक्ति देती है.
(लेखक: कमलेश कमल)
(कमलेश कमल हिंदी के चर्चित वैयाकरण एवं भाषा-विज्ञानी हैं. कमल के 2000 से अधिक आलेख, कविताएं, कहानियां, संपादकीय, आवरण कथा, समीक्षा इत्यादि प्रकाशित हो चुके हैं. उन्हें अपने लेखन के लिए कई सम्मान भी मिल चुके हैं.)
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