दशहरा, भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जो अच्छाई की बुराई पर जीत, अंधकार पर प्रकाश और सच्चाई की अन्याय पर विजय का प्रतीक है. हालांकि यह त्योहार रावण के पुतलों को जलाने और भगवान राम की विजय की कथा के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है, लेकिन इसके कई सांस्कृतिक और धार्मिक रीति-रिवाज भी हैं. इनमें से एक है नीलकंठ पक्षी (भारतीय रोलर) को देखना, जिसे देखने से भगवान की कृपा और अच्छे भाग्य की प्राप्ति मानी जाती है. यह प्रथा सदियों से भारत के विभिन्न हिस्सों में निभाई जा रही है और इसके पीछे पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व है.
भगवान शिव से जुड़ी पौराणिक कथा
नीलकंठ पक्षी का नाम भगवान शिव के नाम पर रखा गया है, जिन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है. हिंदू पुराणों के अनुसार, जब समुद्र मंथन हुआ, तब हानिकारक हलाहल विष निकला, जिससे सृष्टि संकट में पड़ गई. भगवान शिव ने इस विष को अपने गले में निगल लिया और इससे उनका गला नीला हो गया. इस बलिदान से उन्होंने जीवन और सृष्टि को बचाया.
नीलकंठ पक्षी के नीले गले और रंग-बिरंगे पंखों को भगवान शिव के दिव्य स्वरूप का प्रतीक माना जाता है. दशहरे के दिन, इसे देखने से भगवान शिव की रक्षा और आशीर्वाद प्राप्त होने की मान्यता है. यह उनके सहनशीलता, बलिदान और दया का प्रतीक भी है.
भगवान राम और नीलकंठ का संकेत
दशहरे और नीलकंठ पक्षी का संबंध भगवान राम और रावण के युद्ध से भी जोड़ा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, लंका युद्ध के लिए रवाना होने से पहले भगवान राम ने नीलकंठ पक्षी को देखा. इसे उन्होंने स्वर्ग की मंजूरी और विजय का संकेत माना. तब से यह पक्षी सकारात्मक परिणाम और शुभ संकेत का प्रतीक माना जाता है.
दशहरे के दिन परिवार सुबह जल्दी उठकर नीलकंठ को देखने की कोशिश करते हैं. इसे देखकर ऐसा विश्वास किया जाता है कि जैसे राम ने रावण पर विजय पाई, वैसे ही जीवन में भी बुराई पर अच्छाई की जीत होगी और आशीर्वाद प्राप्त होंगे.
सकारात्मकता का प्रतीक
दशहरा केवल अंत का प्रतीक नहीं है, बल्कि नई शुरुआत का संदेश भी देता है. यह दीपावली की तैयारी का मार्ग भी खोलता है.
नीलकंठ पक्षी को देखकर नई उम्मीद और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है. इसके नीले पंख असीम संभावनाओं और खुले आकाश का प्रतीक माने जाते हैं. यह हमें पुरानी परेशानियों को पीछे छोड़कर, नई शुरुआत अपनाने की प्रेरणा देता है.
सदियों पुरानी प्रथा
उत्तर और पश्चिम भारत में लोग आज भी दशहरे की सुबह जल्दी उठकर नीलकंठ देखने की प्रथा निभाते हैं. कुछ लोग इसे देखकर हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं, तो कुछ इसे परिवार और पड़ोसियों के साथ साझा करते हैं. यह प्रथा न केवल सांस्कृतिक एकता को मजबूत करती है, बल्कि प्रकृति और आध्यात्मिकता को जोड़ने का काम भी करती है.
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