पुराणों में वर्णित सात अमर चिरंजीवी: वे योद्धा जो कलयुग के अंत तक रहेंगे जीवित

माना जाता है कि जब भगवान विष्णु कलियुग में कल्कि अवतार के रूप में प्रकट होंगे और अधर्म का नाश करेंगे, तब यही सात चिरंजीवी उनके साथ युद्ध में मदद करेंगे.

Hanuman Ji
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 23 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 3:08 PM IST

भारतीय धर्मग्रंथों और पुराणों में "सात चिरंजीवी" का जिक्र मिलता है. चिरंजीवी शब्द का अर्थ होता है – जो सदा जीवित रहे. ये सात महापुरुष अलग-अलग युगों में अवतरित हुए, परंतु इनमें एक बात समान रही- इनका असाधारण बल, धर्म के प्रति समर्पण और अमरता का वरदान. इनके बारे में एक श्लोक भी है:

"अष्ट चिरंजीवी नित्यं, जीवंति मे धरामण्डले।
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएते चिरंजीविन:।"

माना जाता है कि जब भगवान विष्णु कलियुग में कल्कि अवतार के रूप में प्रकट होंगे और अधर्म का नाश करेंगे, तब यही सात चिरंजीवी उनके साथ युद्ध में मदद करेंगे. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ये चिरंजीवी आज भी धरती पर वास करते हैं और धर्म की रक्षा करते हैं.

1. हनुमान जी – भक्ति और बल के प्रतीक
त्रेता युग में जन्मे हनुमान जी भगवान शिव के 11वें रुद्र अवतार माने जाते हैं. उन्होंने भगवान राम की रावण के विरुद्ध युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. रामजी ने धरती छोड़ने से पहले हनुमान जी को अयोध्या का रक्षक बनाया और वरदान दिया कि वे तब तक जीवित रहेंगे जब तक धरती पर राम नाम का उच्चारण होता रहेगा. माना जाता है कि हनुमान जी आज भी कैलाश पर्वत के उत्तर में स्थित गंधमादन पर्वत पर वास करते हैं.

2. अश्वत्थामा – श्राप में मिली अमरता
महाभारत युद्ध के महान योद्धा अश्वत्थामा, गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे. पांडवों के पुत्रों की हत्या और उत्तरा के गर्भ में पल रहे बालक पर ब्रह्मास्त्र चलाने के कारण भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे उनकी मणि छीन ली और उन्हें शाप दिया कि वे युगों तक घायल अवस्था में भटकते रहेंगे. माना जाता है है कि अश्वत्थामा आज भी नर्मदा नदी के आसपास भटकते हैं और वहां के शिव मंदिरों में गुप्त रूप से पूजा करते हैं.

3. राजा बलि – दानवीर और धरती के रक्षक
भक्त प्रह्लाद के पौत्र और असुरों के राजा बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को तीन पग में समस्त लोक और स्वयं को भी दान कर दिया. इस त्याग के कारण भगवान ने उन्हें अमरता का वरदान दिया और पाताल लोक का अधिपति बनाया. कहते हैं कि ओणम के पर्व पर राजा बलि धरती पर अपने भक्तों से मिलने आते हैं.

4. वेदव्यास – ज्ञान के अमर स्तंभ
महाभारत के रचयिता और वेदों के विभाजक ऋषि वेदव्यास को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है. उन्होंने न केवल महाभारत की रचना की, बल्कि वेदों को चार भागों में विभाजित कर उसे सरल बनाया. वेदव्यास का निवास हिमालय के बद्रीनाथ क्षेत्र में माना जाता है, जहां आम मनुष्य का पहुंचना संभव नहीं.

5. विभीषण – धर्म के लिए समर्पित लंकेश
रावण के छोटे भाई विभीषण ने धर्म का साथ देने के लिए रावण और समस्त लंका का त्याग कर दिया. रामजी ने लंका विजय के बाद उन्हें वहां का राजा बनाया और अमरता का वरदान दिया. लोगों का विश्वास है कि विभीषण आज भी लंका (वर्तमान श्रीलंका) में धर्म की रक्षा के लिए वास करते हैं.

6. कृपाचार्य – नीति और शस्त्र के ज्ञाता
महाभारत काल के एकमात्र योद्धा जिन्होंने धर्म युद्ध की मर्यादाएं पूरी तरह निभाईं. वे हस्तिनापुर के कुलगुरु और युद्ध के पश्चात भी जीवित बचे कुछ चंद योद्धाओं में से एक थे. उन्हें अमरता का वरदान मिला ताकि वे युगों तक ज्ञान का प्रसार करते रहें. मान्यता है कि कृपाचार्य आज भी जीवित हैं लेकिन अदृश्य रूप में धरती पर विचरण करते हैं.

7. परशुराम – चारों युगों में विद्यमान योद्धा
भगवान विष्णु के अवतार परशुराम को शस्त्रों का परम ज्ञाता माना जाता है. उन्होंने क्षत्रियों के अत्याचार से पृथ्वी को मुक्त करने का संकल्प लिया और धरती दान कर अपने गुरु को समर्पित कर दी. कहा जाता है कि वे ही कलियुग में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार को शस्त्र विद्या सिखाएंगे. परशुराम आज भी महेंद्रगिरी पर्वत (ओडिशा) पर तपस्यारत हैं.

ये सात चिरंजीवी केवल पौराणिक पात्र नहीं, बल्कि धर्म, शक्ति, ज्ञान, भक्ति और बलिदान के प्रतीक हैं. इनकी अमरता हमें यह सिखाती है कि सत्य और धर्म का मार्ग कभी समाप्त नहीं होता, और जब भी अंधकार बढ़ेगा, ये चिरंजीवी किसी न किसी रूप में प्रकाश बनकर प्रकट होंगे.

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