शरद पूर्णिमा, जिसे रास पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग की सबसे महत्वपूर्ण और पावन पूर्णिमा मानी जाती है. यह दिन अश्विन मास की पूर्णिमा को आता है, जब वर्षा ऋतु का समापन और फसल के मौसम की शुरुआत होती है. मान्यता है कि इसी रात चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ धरती पर अमृतमयी किरणें बरसाता है. यही कारण है कि यह दिन स्वास्थ्य, आंतरिक शुद्धि और आध्यात्मिक साधना के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है.
पौराणिक कथा और रास लीला
शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है क्योंकि मान्यता है कि इसी रात भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन की गोपियों के साथ महान रास रचाया था. श्रीकृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर गोपियां अपने घर-परिवार छोड़कर भक्ति की पुकार पर चल पड़ीं. कहा जाता है कि हर गोपी के साथ कृष्ण ने स्वयं को विभाजित कर रास किया. यह रात्रि दिव्य प्रेम और भक्ति का प्रतीक मानी जाती है.
व्रत और उपवास
भक्त इस दिन व्रत रखते हैं. कुछ लोग अन्न ग्रहण नहीं करते तो कुछ हल्का या सात्विक भोजन करते हैं. चांद दर्शन के बाद व्रत खोला जाता है.
लक्ष्मी पूजन और कोजागरी व्रत
मान्यता है कि इस रात देवी लक्ष्मी घर-घर भ्रमण करती हैं और जो जागरण करता है, उसे आशीर्वाद देती हैं. इसी कारण इसे कोजागरी पूर्णिमा कहा जाता है (‘को जगर्ति’ = “कौन जाग रहा है?”). भक्त घरों की सफाई करते हैं, दीप जलाते हैं, लक्ष्मी माता का पूजन करते हैं और पूरी रात भजन-कीर्तन करते हैं. बहुत से लोग पूरी रात जागते हैं और भजन गाते हैं, ध्यान करते हैं तथा चंद्रमा का दर्शन करते व्रत और पूजन विधि
खीर चंद्रमा की रोशनी में: इस दिन खीर बनाकर खुले आकाश के नीचे चांदनी में रखी जाती है. मान्यता है कि चंद्रमा की किरणें खीर में अमृत जैसा प्रभाव भर देती हैं. अगले दिन सुबह इस खीर को प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया जाता है, जिससे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है.
शरद पूर्णिमा और स्वास्थ्य से जुड़ी मान्यताएं
शरद पूर्णिमा 2025 की तिथि और समय
शरद पूर्णिमा केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि आध्यात्मिक साधना, स्वास्थ्य और समृद्धि का संगम है. यह रात भक्तों के लिए न केवल पूजा का अवसर है, बल्कि मन और तन को शुद्ध करने का भी अद्भुत अवसर देती है.
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