झांसी मुख्यालय से करीब 80 किलोमीटर दूर मऊरानीपुर तहसील के रौनी गांव की पहाड़ी पर स्थित यह शिव मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि रहस्यमयी घटनाओं के कारण भी प्रसिद्ध है. मान्यता है कि यहां आज भी ब्रह्म मुहूर्त में अदृश्य शक्ति सबसे पहले पूजा करती है. यह रहस्य आज तक कोई सुलझा नहीं पाया है.
इस मंदिर का इतिहास क्या है?
मंदिर के पुजारी महादेव गोस्वामी के अनुसार, यह शिवलिंग द्वापर युग का है और इसकी स्थापना महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने की थी. पांडव जब कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर के दर्शन करने गए, तो उन्हें शिव के दर्शन नहीं हुए. बाद में उन्हें ज्ञात हुआ कि शिव भैंसों के झुंड में छुपे हैं. इसके बाद भगवान शिव ने तीन रूप धारण किए, केदारनाथ, पशुपतिनाथ (नेपाल) और पतली महादेव (पाताल). इसी कड़ी में एक मूर्ति कजरी वन में स्थापित की गई, जिसे युधिष्ठिर ने रोनी गांव की पहाड़ी पर स्थापित किया.
मंदिर की पहली पूजा को लेकर क्या रहस्य है?
पुजारी के अनुसार, आज तक कोई भी व्यक्ति मंदिर की पहली पूजा नहीं कर पाया है. सुबह जैसे ही कपाट खोले जाते हैं, शिवलिंग पर बेलपत्र, फूल, चावल पहले से चढ़े होते हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि यह पूजा नंदी करते हैं, कुछ कहते हैं सिद्ध बाबा करते हैं, लेकिन असल में यह कौन करता है, यह आज भी रहस्य है.
मंदिर की वास्तुकला और बनावट कैसी है?
मंदिर करीब 200 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, जहां तक पहुंचने के लिए 560 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. मंदिर का निर्माण चंदेल काल में दसवीं शताब्दी में हुआ माना जाता है. इसमें सैंडस्टोन का प्रयोग हुआ है और गर्भगृह की छत पर कमल के फूलों की अद्भुत नक्काशी है. सबसे अनोखी बात यह है कि शिवलिंग नंदी की पीठ पर स्थित है, जो इसे दुर्लभ बनाता है.
श्रद्धालु शालिनी बताती हैं कि यहां आकर उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं. गीता कहती हैं कि सुबह जब मंदिर के द्वार खुलते हैं, तब पूजा पहले से होती है.
दीप्ति बताती हैं कि शिवलिंग पर सुबह फूल और बेलपत्र चढ़े मिलते हैं. वहीं उपासना नाम की भक्त बताती हैं, उनके भतीजे को सांप ने काटा था, लेकिन बाबा से प्रार्थना के बाद वह ठीक हो गया.
अब तक इस रहस्यमयी पूजा पर कोई वैज्ञानिक अध्ययन सामने नहीं आया है. हालांकि, इतिहासकार मानते हैं कि यह मंदिर चंदेल काल का है और इसकी स्थापत्य कला इसे विशेष बनाती है.
-अजय झा की रिपोर्ट