देश में जहां रावण दहन कर खुशियां मनाई जाती हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो रावण के सौ साल पुराने मंदिर में विशेष अराधना करते हैं. यह पूजा केवल दशहरे के दिन ही होती है.
कहां होती है पूजा?
कानपुर के शिवाला में स्थित उत्तर भारत के एकलौते दशानन मंदिर में दशहरा के दिन सुबह से भक्त रावण की पूजा अर्चना करने के लिए आते है. यह मंदिर साल में एक बार विजयादशमी के दिन ही खुलता है और लोग सुबह-सुबह यहां रावण की पूजा करते हैं. दशानन मंदिर में शक्ति के प्रतीक के रूप में रावण की पूजा होती है और श्रद्धालु तेल के दिए जलाकर मन्नतें मांगते हैं.
परंपरा के अनुसार आज मंदिर के कपाट खोले जाएंगे और रावण की प्रतिमा का साज श्रृंगार किया गया. इसके बाद आरती हुई. आज शाम मंदिर के दरवाजे एक साल के लिए बंद कर दिए जाएंगे.
क्यों बनवाया गया रावण मंदिर?
इस मंदिर का निर्माण सौ साल पहले महाराज गुरू प्रसाद शुक्ल ने कराया था. रावण प्रकांड पंडित होने के साथ-साथ भगवान शिव का परम भक्त था. इसलिए शक्ति के प्रहरी के रूप में यहां कैलाश मंदिर परिसर में रावण का मंदिर बनाया गया. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए देवी आराधना भी करता था. बताया जाता है कि उसकी पूजा से प्रसन्न होकर मां छिन्नमस्तिका ने उसे वरदान दिया था कि उनकी की गई पूजा तभी सफल होगी जब भक्त रावण की भी पूजा करेंगे.
बता दें कि करीब 206 साल पहले संवत 1868 में तत्कालीन राजा ने मां छिन्नमस्तिका का मंदिर बनवाया था और रावण की करीब पांच फुट की मूर्ति उनके प्रहरी के रूप में बनवाई थी. विजयदशमी के दिन मां छिन्नमस्तिका की पूजा के बाद रावण की आरती होती है और मंदिर सरसों के दीपक और पीले फूल चढ़ाए जाते हैं.
-रंजय सिंह की रिपोर्ट