भारत के पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा के उदयपुर में स्थित त्रिपुर सुंदरी मंदिर, 51 शक्तिपीठों में से एक है. यह मंदिर देवी त्रिपुर सुंदरी को समर्पित है, जिन्हें ललिता और शोडशी के नाम से भी पूजा जाता है. इस मंदिर का इतिहास 520 साल पुराना है. इसकी स्थापना राजा धन्य माणिक्य ने की थी. यह मंदिर देवी सती के दाहिने पैर के अंगूठे के गिरने से शक्ति पीठ बना.
मां त्रिपुर सुंदरी का स्वरूप और महत्व
देवी त्रिपुर सुंदरी को अनुपम सौंदर्य और भक्तों को अभय प्रदान करने वाली देवी माना जाता है. देवी शांत मुद्रा में भगवान सदाशिव की नाभि से निकलने वाले कमल के आसन पर विराजमान हैं. उनके तीन नेत्र और चतुर्भुजी स्वरूप में पाश, अंकुश, धनुष और बाण हैं. देवी के पूजन से आत्मिक बल, यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है.
मंदिर की संरचना और विशेषताएं
त्रिपुर सुंदरी मंदिर की ऊंचाई 75 फीट है और यह चार स्तंभों पर खड़ा है. गर्भगृह में देवी की दो प्रतिमाएं हैं, जिनमें से छोटी प्रतिमा को राजा धन्य माणिक्य युद्ध के मैदान में लेकर जाते थे. मंदिर के पास स्थित कल्याण सागर झील धार्मिक महत्व रखती है.
पौराणिक कथा और देवी का प्राकट्य
देवी त्रिपुर सुंदरी का प्राकट्य शिव द्वारा कामदेव की अग्निता और राक्षस भांडा सुर के विनाश से जुड़ा है. कथा के अनुसार, देवी ने भांडा सुर का नाश कर देवताओं को भयमुक्त किया. त्रिपुरा उपनिषद में देवी को सर्वोच्च चेतना के रूप में वर्णित किया गया है.
मंदिर में माता रानी के दर्शन का समय
मंदिर सुबह 6:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक और फिर दोपहर 2:30 बजे से रात 9:00 बजे तक खुला रहता है. रात 9:00 बजे शयन आरती के साथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं.
भक्तों की श्रद्धा और अनुभव
मंदिर में हर वर्ग और उम्र के भक्त आते हैं. भक्तों का मानना है कि यहां सच्ची आस्था से की गई प्रार्थना हमेशा पूरी होती है. एक भक्त ने कहा कि यहां आकर मन को सुकून मिलता है और डिप्रेशन दूर हो जाता है. दीपावली के अवसर पर मंदिर परिसर में विशाल मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं. त्रिपुर सुंदरी मंदिर न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक महत्व भी रखता है. यह मंदिर हर समुदाय के लोगों को समान रूप से आकर्षित करता है. देवी मां के दरबार में आने वाले भक्तों की झोली हमेशा भरकर जाती है.