Tulsi Vivah 2023: क्या है तुलसी विवाह की परंपरा, इस साल कब है ये पूजा, क्या हैं इसके नियम और पूजा विधि

हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व है. इस दिन माता तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराया जाता है. मान्यता है कि जो भी भक्त ऐसा करता है, उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा और उसे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे.

Tulsi Vivah
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 23 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 12:33 PM IST

कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठान एकादशी के तौर पर मनाया जाता है. कई जगहों पर इस दिन ही तुलसी विवाह की विशेष परंपरा है. जबकि कई जगहों पर देवउठान एकादशी के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह कराया जाता है. इस दिन शालिग्राम और तुलसी का विवाह कराया जाता है. तुलसी विवाह की पूजा में व्रत कथा को पढ़ने और सुनने का विशेष महत्व होता है. 

इस साल किस दिन है तुलसी विवाह-
इस साल 23 नवंबर और 24 नवंबर दोनों दिन तुलसी विवाह की तिथि है. कार्तिक का महीना श्रीहरि की पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. इस महीने में एकादशमी के दिन तुलसी विवाह की परंपरा है. कई जगहों पर ये एकादशी के अगले दिन तुलसी विवाह कराया जाता है. इस साल आज यानी 23 नवंबर को एकादशी है. इस तरह से तुलसी विवाह आज और कल में से किसी भी दिन कराया जा सकता है. इस साल तुलसी विवाह का शुभ समय 23 नवंबर को रात 9 बजकर एक मिनट से शुरू होगा और अगले दिन यानी 24 नवंबर को शाम 7 बजकर 6 मिनट तक रहेगा.

तुलसी विवाह के लिए जरूरी सामग्री-
देवउठनी के दिन भगवा विष्णु 4 महीने बाद क्षीर सागर में शयन मुद्रा से जग जाते हैं. इस दिन से ही शादी-विवाह, मुंडन जैसे मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है. तुलसी पूजन की मान्यता है कि ऐसा करने से विष्णुजी और मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं. तुलसी विवाह के लिए हल्दी की गांठ, शालिग्राम, गणेशजी की प्रतिमा, श्रृंगार सामग्री, बताशा, फल, फूल, हल्दी, हवन सामग्री, गन्ना, लाल चुनरी, अक्षत, कुमकुम, घी, रोली, मिठाई, आंवला, बिंदी, चूड़ी, मेहंदी, तुलसी का पौधा और विष्णु की प्रतिमा की जरूरत पड़ती है.

तुलसी विवाह का विधि-
शालिग्राम और तुलसी का विवाह की परंपरा निभाने की पूरी प्रक्रिया है. पूरे विधि विधान से तुलसी विवाह संपन्न करने पर भगवान की कृपा होती है. चलिए आपको बताते हैं कि तुलसी विवाह की क्या विधि है.

  • तुलसी विवाह घर के आंगन में कराना चाहिए. सबसे पहले उस जगह को पूरी तरह से साफ करना चाहिए. शादी की परंपरा सूर्यास्त के बाद गोधूलि बेला में निभानी चाहिए.
  • तुलसी के गमले को दुल्हन की तरह सजाएं. पूजा की चौकी पर तुलसी का गमला रखें और उसमें शालीग्राम को रखें.
  • इसके बाद कलश में जल रखें और उसमें 5 या 7 आम के पत्ते लगाकर पूजा स्थल पर रखें. 
  • इसके बाद दीप जलाएं और दोनों तिल चढ़ाएं.
  • दूध में भीगी हल्दी शालीग्राम और तुलसी माता को लगाएं. विवाह की रस्म के दौरान मंगलाष्टक का पाठ करें.
  • इसके बाद तुलसी को लाल चुनरी ओढ़ाएं. शालीग्राम की पूजा करें.
  • 11 बार तुलसी की परिक्रमा करें और भोग लगाएं.

क्या है तुलसी विवाह की व्रत कथा-
तुलसी विवाह की पूजा में व्रत कथा को पढ़ने का विशेष महत्व होता है. लेकिन ये व्रत कथा क्या है? चलिए आपको बताते हैं. दरअसल एक दैत्य कालनेमी था. जिसकी कन्या वृंदा का विवाह महाराक्षस जालंधर से हुआ था. जालंधर ने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया. लेकिन समंदर से उत्पन्न लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के तौर पर स्वीकार किया. उसके बाद राक्षस जालंधर देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर गया. राक्षस ने भगवान शिव का रूप धारण किया. लेकिन माता पार्वती ने उसे पहचान लिया और वहां से अंतर्ध्यान हो गईं. इसके बाद माता पार्वती ने पूरी कहानी भगवान विष्णु को बताई. जालंधर की पत्नी अत्यंत प्रतिव्रता थी. जिसकी वजह से जालंधर को ना कोई मार सकता था और ना ही उसे पराजित कर सकता था. इसलिए जालंधर को मारने के लिए उसकी पत्नी के पतिव्रता धर्म को भंग करना जरूरी था.

भगवान विष्णु ने ऋषि का रूप धारण किया और वृंदा के पास जंगल में चले गए. भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे. जिसे देखकर वृंदा डर गई. ऋषि ने दोनों राक्षसों को मार दिया. उनकी शक्ति देखकर वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जालंधर के बारे में पूछा. इसके बाद ऋषि ने दो राक्षस प्रकट किए. एक के हाथ में जालंधर का सिर था और दूसरे के हाथ में धड़. पति की ये हालत देखकर वृंदा बेहोश हो गई. जब वो होश में आई तो उन्होंने भगवान से पति को जीवित करने की विनती की. इसके बाद भगवान ने जालंधर को जीवित कर दिया और खुद उसी शरीर में प्रवेश कर गए.

जब जालंधर जिंदा हो गया तो वृंदा उसके साथ पतिव्रता का व्यवहार करने लगी और उसका सतीत्व भंग हो गया. इसके साथ ही वृंदा का पति जालंधर युद्ध में मारा गया. इसके आहत होकर वृंदा ने भवगान विष्णु को शिला हो जाने का शाप दिया और भगवान शालिग्राम पत्थर बन गए. भगवान के पत्थर बन जाने से संसार में असंतुलन हो गया. सभी देवी-देवता वृंदा से भगवान विष्णु को शाप से मुक्त करने की विनती की. वृंदा ने भगवान को शाप से मुक्त कर दिया. लेकिन स्वयं आत्मदाह कर लिया. जब वृंदा भस्म हुई तो वहा तुलसी का पौधा उग गया. भगवान विष्णु ने कहा कि तुम अपने सतीत्व की वजह से मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो. अब तुम तुलसी के रूप में हमेशा मेरे साथ रहोगी. जो मनुष्य मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा, उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा.

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