अच्छी बात के इस एपिसोड में पंडित धीरेंद्र शास्त्री कहते हैंं कि जैन परंपरा के प्रथम प्रवर्तक श्री ऋषभदेव जी महाराज ने राजपाट त्याग कर सिद्धियां प्राप्त कीं, लेकिन उन्होंने सिद्धियों को भगवान का खिलौना बताया. उनका मानना था कि भगवान की भक्ति ही सर्वोपरि है. इसी कड़ी में भरत जी की कथा आती है, जिन्होंने राजपाट त्यागने के बाद एक हिरण के बच्चे से मोह कर लिया. इस मोह के कारण उन्हें अगले जन्म में हिरण बनना पड़ा. शास्त्रों में कहा गया है, "अंतयामती सागती" अर्थात अंत समय में जैसी मति होती है, वैसी ही गति होती है. हिरण बनने के बाद भी भरत जी ने भगवान का स्मरण नहीं छोड़ा और तीसरे जन्म में वे जड़ भरत के रूप में एक ज्ञानी ब्राह्मण बने. यह कथा जीव दया के महत्व पर भी प्रकाश डालती है, क्योंकि सभी जीवों को जीने का अधिकार है. यह भी बताया गया है कि भगवान ने जीव के हाथ में कर्म की लगाम छोड़ी है, और जैसा कर्म किया जाता है, वैसा ही फल मिलता है. इसलिए, भगवान का भजन और जीवों पर दया ही जीवन का वास्तविक सार है. देखिए अच्छी बात.