गीता को श्री हरि की साक्षात वाणी और कलयुग में मानवों का पथ प्रदर्शक माना जाता है. इसका पाठ पूर्वजों की मुक्ति और मोक्ष का एक सरल साधन भी है. गीता पाठ करने से पहले कुछ विशेष सावधानियों का पालन करना आवश्यक है, जिससे इसका प्रभाव बढ़ जाता है. पाठ से पूर्व भगवान कृष्ण की तस्वीर के सामने घी का दीया जलाकर और एक लोटे में जल भरकर रखना चाहिए. संकल्प लेकर पाठ शुरू करें और हर अध्याय के बाद शंख बजाएं. पाठ करने वाले को प्याज और लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए और पीले आसन पर बैठकर ही पाठ करना चाहिए. एक वक्ता के अनुसार, "सर्वभूतेश उमाबेकं भाव मव्य निक्षके" का भाव समझना महत्वपूर्ण है, जिसका अर्थ है सभी प्राणियों में एक ही आत्मा का वास देखना. पितृपक्ष में सातवें, नौवें और ग्यारहवें अध्याय का पाठ विशेष फलदायी होता है.