भगवान श्रीकृष्ण की प्रमुख स्तुतियों में गोपाल सहस्त्रनाम, द्रौपदी स्तुति और कुंती स्तुति शामिल हैं. इन स्तुतियों का सच्चे मन से पाठ करने से जीवन के सभी कष्टों का अंत होता है. महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि महारानी कुंती ने उनसे वह मांगा जो कोई नहीं मांगता– दुख. कुंती ने कहा था, 'प्रभु मुझे आप कष्ट का वरदान दीजिए ताकि मैं निरंतर आपको याद करती रहूं. 'यह संपूर्ण भक्ति की स्थिति है. कुंती स्तुति में 26 श्लोक हैं जो श्रीमद् भागवत पुराण के प्रथम स्कंद के अध्याय आठ में वर्णित हैं. इसमें कुंती ने भगवान के विभिन्न नामों और गुणों का उल्लेख करते हुए अपने और परिवार की रक्षा की प्रार्थना की है. धर्मग्रंथों के जानकार मानते हैं कि कुंती की वेदना से निकले स्वर चिरंजीवी बनकर कुंती स्तुति के रूप में विख्यात हुए. द्रौपदी ने चीर हरण के समय भगवान कृष्ण की स्तुति की थी, जिसे द्रौपदी स्तुति कहते हैं. यह शरणागत स्तुति है, जिसके पाठ से भगवान भक्तों की जिम्मेदारी स्वीकार कर लेते हैं. द्रौपदी ने अपनी दयनीय स्थिति का वर्णन करते हुए कृष्ण से उन्हें बचाने की प्रार्थना की थी. इन स्तुतियों के पाठ से श्रीकृष्ण स्वयं भक्तों की रक्षा के लिए पहुंच जाते हैं.