भगवान शंकर ने विषपान कर नीलकंठेश्वर का नाम पाया. देवताओं के अत्याचार से बचाने के लिए भगवान शंकर ने विष को अपने कंठ में धारण किया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया. इस कथा में देवी काली का भी उल्लेख है, जिन्होंने चंद और मुंड राक्षसों का वध किया.