सत्यनारायण कथा में उल्कामुख राजा और साधु नाम के वणिक की कहानी बताई गई है. राजा ने संतान प्राप्ति के लिए सत्यनारायण व्रत किया, जबकि साधु ने संकल्प लेकर भी व्रत नहीं किया. कथा में भक्ति, वचन पालन और कंजूसी के परिणामों को दर्शाया गया है. साधु की कंजूसी और वचन भंग के कारण उसे और उसके परिवार को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.